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प्रतिमाप्रकरण
प्रतिमा धारी होता है । यह भी एकबार भोजन पान करनेवाला उत्तम श्रावक कहलाता है। परन्तु भिक्षा भोजन करता है। सिर्फ वस्त्र मात्रका थोड़ा परिग्रह रखता है और बैठकर पात्र में भोजन करता है । इसके दो भेद हैं । १) क्षुल्लक ( २ ) आर्यक ( ऐलक ) । यह सवारीका उपयोग कतई नहीं कर सकता। (१) क्षुल्लक, खंडवस्त्र ( अंगोछा ) और लंगोटी रखता है (२) ऐलक सिर्फ लंगोटी रखता है । थे दोनों अणुवती, मुनिसे दीक्षा लेते हैं--- गृहविरत अर्थात गहस्थाथम छोड़ देते हैं । परिग्रहको अपेक्षासे दो लंगोटियां व दो पिछोरा पासमें रखते हैं किन्तु उपयोग ( स्तमाल) की अपेक्षा क्षुल्लक एक लंगोटी व एक अंगोछा हो बाबमें लाते हैं तथा ऐलक एक लंगोटी ही काममें लाता है ! यह भेद है । इनके पांचवां ही गुणस्थान होता है। मनवचकाम इन तीन भंगोंसे - त्यागी होता है- श्रावकका है। अभी एक बार नैकर पात्र में भोजन करता है।
इसी तरह आर्यिका भी साड़ी एक पहनता है, एक पासमें ( स्टाक में ) रखती है तथा बैठकर पात्रमें भोजन करती है, वह भी उत्कृष्ट श्राविका है--भिक्षाभोजन विधिप्रकार करती है । आममकी आज्ञाके अनुसार प्रवृत्ति करना ( चलना ) हो सम्यग्दृष्टिको पहिचान है । निरतिचार १२ व्रत पालनेका फल १६ सोलहवें स्वर्ग तक जन्म लेना है और वहाँसे चलकर मनुष्यभान पाकर मोक्षको जाना बतलाया गया है इसको ध्यानमें रखना चाहिये।
नोट-प्रसंगवश यहाँ पर १२ व्रतोंसे ११ ग्यारह प्रतिमाओंका निर्माण अल्पबुद्धिके अनुसार लिखा मरना है। पाठकमण भूलकी मा देंगे और सूचना देने की कृपा करेंगे । विषय कठिन है, स्वाध्याय और अनुभवके बल पर यह किया गया है उपयोगी समझ ग्रहण करेंगे। किम्बहुना ।
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