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रात्रिभोजनरपागाशुपत
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पद्य मित्र तुम्हारा तक ठीक नहिं, रात्रि भोजके करनेका । रात्रि मोजमें हिंसा बहु है, अधिक रागके धरनेका ।। जैसे अन मोजमें क्रमती रागादिक सब होते हैं।
मांस भोजमैं अधिक रागका होना निश्चित करते हैं ॥१३॥ अन्षय अर्थ-आचार्य उत्तर देते हैं ( पूर्वपक्षका खंडन करते हैं । कि[ नैवं, रजनभुको वासरभुत हि गमाविको मनसि ] भाई ( मित्र ) तुम्हारा पूर्वपक्ष (रात्रि भोजनकी पुष्टि करना) उचित यश बजनदार नहीं है, कारण कि निश्चयसे देखा जाय तो दिनके भोजनकी अपेक्षा रात्रिके भोजनमें अधिक राग होता है जो अधिक हिंसाका कारण है । दृष्टान्त द्वारा बतलाते हैं [ अनकबलस्य मुक्के मांसकबसम्म भुमो हन ] जैसे कि अन्न खानेको अपेक्षा मांसके खाने में अधिक राग पाया जाता है, जिससे अधिक हिंसा होती है, अतएव वह हेय है ।।१३२||
भावार्थ- जीवनमें भोजन-पान करना अनिवार्य है-सभी संसारोजीव भोजन-पान किया करते हैं कारण कि व्यवहारनयसे भोजन-पान हो प्राण माने गये हैं, क्योंकि उनके बिना जीवन स्थिर नहीं रह सकता। परन्तु भोजन अनेक किस्मका होता है और अनेक तरहके जीव भी होते हैं। ऐसी स्थितिमें हर एकका भोजन ( खुराक) प्रायः नियत रहता है, किसीका भोजन कोई नहीं करता न हर समय करता है ऐसी व्यवस्था प्राकृतिक देखने में सुनने में आती है। तदनुसार मनुष्यका मुख्य भोजन ( प्राकृतिक ) अन्न है ( मांसादि नहीं है ) पशुओंका भोजन घास फूल आदिका खाना है इत्यादि । परन्तु अज्ञानतावश प्राकृतिक भोजन ( मांसादि ) प्रायः करने लगा है, यह बड़े दुःख व आश्चर्यकी वास है, इतना ही नहीं वरन राश्रिको भी और बार बार जहाँ तहाँ जिस तिसका भोजन करने लगा है व पतित हो गया है । प्राणीका हरएक कार्य नियमित व सीमित होना चाहिये तभी उसकी शोभा है व महत्त्व है। जितने कार्य विपरीत होते हैं वे प्रायः अज्ञान ब रागादिक विकारोंकी अधिकतासे ही होते हैं अतएव वह महान हिसक व पापी समझा जाता है जिससे वह संसारसे पार नहीं हो सकता। फलतः अहिंसाधर्मको ही धारण करना चाहिये, वही मोक्षका मार्ग है, दूसरा नहीं, उसकी पूर्ति दिनके भोजनसे ही हो सकती है जो प्राकृतिक है । किम्बहुना। कुतर्क करना बेकार है। अस्तु ॥१३॥ आचार्य-लोकप्रसिद्ध व अनुभवसिद्ध उदाहरण देकर दिवा भोजनकी ही पुष्टि करते हैं ।
अकोलोकेन विना भुंजानः परिहरेत कथं हिंसाम् । अपि कोधितप्रदीपे भोज्यजुषां सूक्ष्मजीवानाम् ॥ १३३॥
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पथ
दीपकके उजाले में भी शान होत है जीवोंका। पर सूरज सम नहीं होत है, यही मेद है दोनोंका ।
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