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शिक्षा करण
भावार्थ - जबतक मन व आसन आदिको स्थिर रखनेका अभ्यास न हो तबतक सामायिक (चित्तकी एकाग्रता ) कायम नहीं रह सकती, यह नियम है । अतएव सामायिकका संस्कार डालने व उसको स्थिर करनेके लिये प्रतिदिनके सिवाय पन्द्रह रोजमें दो बार दुकानदारी आदिको छोड़ कर ( बाहिर आरंभादि बन्द कर ) एकान्त स्थानमें जाकर खूब सामायिक स्वाध्याय आदि धार्मिक कार्य जरूर करना ये तभी सामायिकका संस्कार दृढ़ हो सकता है अर्थात् आरम्भादिका ( निमित्तका ) त्याग किये बिना सामायिक ( उपयोगकी) स्थिरता या एकाग्रता ठोक नहीं रह सकती, तब इंद्रियसंयम व प्राणिसंयम भी नहीं पल सकता, जिसकी व्रतीको खास आवश्यकता रहती है । फलतः श्रावकको सामायिक करनेका मुख्य लक्ष्य रखना चाहिये और उसका दृढ़ संस्कार डालना चाहिये | उसकी विधि उपवास करना भी मुख्य है । क्योंकि समय वगैरहको बचत होने से वह हो सकती है । स्वरूपमें स्थिरता लाने के लिये या निर्विकल्प होनेके लिये यह उपाय ( साधन) जरूर जरूर करना चाहिये। यह उपाय ही सर्वोत्तम उपाय है, उसीसे अनादिकालके संचित कर्म नष्ट होते हैं तब मोक्ष होता है । यह सामायिक चारित्रका भेद है, ऐसा समझना चाहिये । मन या चित्त बड़ा चंचल है वह बार-बार रागादिमें भटक जाता है । अतएव पुरुषार्थी पुरुष उसको बार-बार खींच कर आत्मस्वरूपमें लगाते हैं और ऐसा करते-करते अन्तर्मुहूर्त तक एक पदार्थ में स्थिर या एकाग्र कर देते हैं-विभावसे हटाकर स्वभावमें खचित ( लोन ) कर देते हैं इत्यादि ।। १५२ ।।
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आचार्य सामायिककी स्थिरता के लिए उपवास करने की पूर्ण विधि अथवा प्रोषघोषवास शिक्षाव्रतका लक्षण कहते हैं ।
मुक्तसमस्तारंभः श्रोषेधदिन पूर्व वासरस्यार्थे ।
उपवासं गृहीयान्ममत्वमपहाय देहादी || १५२||
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पहिले दिनके आधे दिनसे अनादिका त्याग करे | और सभी आरंभ त्यागकर निज आतमका ध्यान घरे terfere are छोड़कर धारण वह उपवास करे । प्रोष दिन धारण करके प्रोषधोपवास जु नाम रे || १५२|| अन्वय अर्थ - आचार्य कहते हैं कि सामायिकव्रतका कर्तव्य है कि [ षधनपूर्ववासरस्यान् मुक्तसमस्तारम्भः ] पर्व ( अष्टमी या चतुर्दशी के दिनसे एक दिन पहिलेके आये दिन से अर्थात् दोपहर से सम्पूर्ण आरम्भ ( व्यापारादि ) का त्याग करते हुए और [ हादी मममपहाय ] शरीरादिकमें ममत्वको छोड़कर [ उपवास गृह्णीयात् ] उपवास धारण कर लेवे अर्थात् चारों प्रकार का आहार छोड़ देवे, यह विधि है जो प्रोषधोपवासव्रतका स्वरूप है || १५२||
१. सामयिकछेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसुक्ष्म सांपराययथाख्यातमिति चरित्रं ॥१॥ तस्यार्थसूत्र अ० ६ । २. पर्वका दिन प्रोषधका अर्थ पर्व है । अथवा एकादान है।