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रात्रिभोजनव्यागा
पूर्ण अहिंसा धर्म वही है जो गुणिजन धारण करते । कर्मकार शिवपुरको जाते सदा काल सुखमय रहते || १३४ ||
अन्वय अर्थ – आचार्य कहते हैं कि [ किंवा बहुप्रलपि: ] बहुत विस्तार के साथ और बारबार एक ही बातको कहने से कोई लाभ नहीं होता । अतएव । यः मनोधनकार्यः रात्रिभूि परिहरति ] जो प्राणो ( मनुष्य विवेकी) मन-वचन-काय इन तीन योगोंसे ( भंगोस ) रात्रिभोजनका त्याग करता है [ स सततं अहिंसां पालयति ] वह निरंतर (अहिंसा) को पालता है [ इवि सिद्धं ] यह सारांश निकलता है ( सिद्ध होता है ) ।। १३४ |
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भावार्थ - इस ग्रंथ में मोक्षमार्गका अथवा 'अहिंसा धर्म का मुख्यतासे निरूपण किया गया है ( जिसके पालक श्रावक व मुनि होते हैं ) अस्तु । श्लोक नं० ४० से हिंसा ( अधर्म ) के साधनभूत पाँच पापोंका वर्णन किया है। फिर श्लोक नं० १११ से हिंसा के महान साधन परिग्रह पापका विस्तार के साथ कथन किया है। उसके बाद श्लोक नं० १२९ से रात्रिभोजन पाप ( परिग्रहके भेद का विस्तार के साथ वर्णन किया है । और 'अहिंसा' धर्मको पालन करनेके लिये उक्त सभी बातोंका त्याग करना जरूरी बतलाया है, जिसका सारांश इस श्लोक ( ४३४ ) में बतलाया है । जब कोई विवेक जीव बुद्धि व श्रद्धाबलसे हेय उपादेय को समझकर वैसा आचरण ( वृत्ति ) करता है तभी वह संसारसे मुक्त होता है । धर्मका स्वरूप तभी समझमें आता है जबकि स्वपरका मेंदज्ञान होता है। स्वपरका मेदज्ञान, मिध्यादर्शन और मिथ्याज्ञानके अभाव होनेपर होता है, अतएव पेतर उनका भी अभाव (क्षय) करना अनिवार्य है । रत्नत्रय की प्राप्ति करना हो 'पुरुषार्थ की सिद्धिका उपाय' है जो अहिंसा या वीतरागता रूप है किम्बहुना ॥ १३४ ॥
जो मुमुक्षु जीव निरन्तर रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गका सेवन करते हैं उनको मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती हैं, यह फल दिखाते हैं।
इत्यत्र त्रितयात्मनि मार्गे मोक्षस्य ये स्वहितकामाः ।
अनुपरतं प्रयतन्ते प्रयान्ति ते मुक्ति मचिरेण ॥ १३५ ॥
पक्ष
स्वति चाहनेवालोंकी यह है उपदेश अन्तमें अब । मार्ग तीन विघ माने तब ॥ मोक्ष मार्ग में कगते है। मोक्ष उन्हें मिलता है जल्दी, अम्र उसमें वे पगते हैं ।। १३५||
है eिa aast मोक्ष पदारथ, ऐसा निश्चय करके जो जन,
अन्वय अर्थ - आचार्य कहते हैं कि [ ये स्वहितकामाः अत्र त्रितयास्मनि मोक्षस्य मार्गे ] आत्मकल्याणके इच्छुक ( मुमुक्षु ) जो भव्यजीव इस रत्नत्रयरूप मोक्षके मार्ग में [ अनुवरतं प्रयतन ] निरन्तर प्रयत्न या पुरुषार्थ करते रहते हैं [ ते अधिरेण मुक्ति प्रयान्ति ] के जल्दी ही मोक्षको
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