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धम्यं यशः शर्म य सेवमानाः केप्येशोजन्मविदुः कृतार्थम् ।
अन्य द्विशी विस वयं स्वमोधाग्यहानि यान्ति अयसेवथैव ॥18॥ सा घम० अ०१ अर्थ- संसार में सबसे उत्तम धर्म, कीर्ति व सुख ये तीन चीजें मानी जाती हैं। उनमेंसे कोई जीव धर्म या पुण्य प्राप्तकर लेने मात्रसे संतुष्ट या कृतकृत्य हो जाते हैं । कोई नामवरी या कोति फैल जानेसे संतुष्ट हो जाते हैं, तो कोई इष्ट प्रयोजन सिद्ध हो जानेसे ( मनोरथ पुरा हो जानेसे, संतुष्ट या सफल हो जाते हैं क्योंकि लोककी रुचि भिन्न-भिन्न प्रकारकी होती है। परन्तु विवेकी पुरुष उपर्युक्त तीनों ( धर्म, यश, मार्म )को प्राप्त करके अपनेको कृतकृत्य मानते हैं यह भेद है । यही उचित है । अर्थात् पद व योग्यताके अनुसार संयोगी पर्यायकी भूमिकामें रहते हुए अरचि रूप उपर्युक्त सभी कार्योका करना अनुचित नहीं माना व कहा जा सकता। कारण कि वह विवेकी सबको बिवेक दुष्ट्रिसे देखता है उसके न्याय है अस्तु । विवेकी जीव संसारके छटनेको ही कृतकृत्य होना मानते हैं किन्त संसारमें रहकर मनचाहा कार्य करनेको कलकत्य होना नहीं मानते, यतः वे सदैव संसार शरीर भोगोंसे उदास ( विरक्त ) रहते हैं ।। १०२।।
आचार्य आगे इस वातका खुलासा करते है कि परधनका चुराना नोबका धात. ( हिसा) करना है ( उससे हिसा पाप लगता है ) सो कैसे ? समाधान करते हैं ।
अर्था नाम य एते प्राणा एते बहिश्चराः पुंसाम् । हरति स तस्य प्राणान् यो यस्य जनो हरत्यर्थान् ॥१०३||
पद्य
अर्थ नाम धनका अरु प्राणोंका है लोक बताते हैं। अत: धनादिक हरनेवाले निशदिन पाप कमाते हैं। धन है बाहिर प्राण जीवके इससे वे मर जाते हैं।
हिंसापाप जम्हें लगता है परधन जो खा जाते हैं ।। १.३॥ अन्यय अर्थ---आचार्य कहते हैं कि [पने ये अर्धा नाम एते पुंसाम् अहिश्चराः RI: सन्धि ] लोकमें जितने धनके नाम हैं वे सब जीवोंके बाहिरी प्राण हैं अर्थात् बाह्यप्राणोंके धनादि नाम हैं ऐसा समझना चाहिये अतएव [ यो जनः अस्य अर्थान् हरसि स तस्य प्राणान् हरति ] जो मनुष्य दूसरेके धनको चुराता है वह मानो उसके प्राणोंको चुराता या घात करता है अर्थात् उसे मार डालता है ( यहाँपर निमित्त की मुख्यता समझना ) ॥१०३।।
भावार्थ---यह सब अज्ञान या मिथ्यात्वको महिमा है कि मिथ्यादृष्टि जीव परपदार्थ में एकत्व ( अभेद ) बुद्धि करता है कि ये सब संयोगी पर्याय में प्राप्त हुई चीजें मेरो हैं (तन धन जन आदि सभीको इष्ट अनिष्ट मानता है। अतएव वह धन दौलतको अपने ही प्राण ( जीवन देनेवाले) समझता है, उनमें राग व इष्ट बुद्धि करता है। ऐसी अवस्थामें यदि धनजन आदि
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