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सम्यग्दर्शन
२.विशुद्धिलब्धि-मोहका अर्थात मिथ्यात्व आदि प्रकृतिका मन्द उदय होनेसे मन्दकपायरूप परिणामोंका होना, विशुद्धिलब्धि कहलाती है जहाँ तत्व विचारका भाव ( रुचि हो सकता है अथवा सामान्यतया 'मोहनीकम' का मन्द उदय होना लिया जा सकता है।
. (१) देशनालब्धि-देवगुम आदिका उपदेश मिलना अथवा उसको धारणाका होना, देशनालब्धि कहलाती है। वह साक्षात् मिलता है व पूर्वका संस्कार रहता है। जो समय पर काम आता है।
(४) प्रायोग्यलब्धि-विशेष योग्यताकी प्राप्ति होना, प्रायोग्यलब्धि कहलाती है। जैसे कि...पूर्वबद्ध कर्मोकी स्थिति घटकर. अन्त: कोडाकाडा सागर के बराबर जायक करोडको एक करोड़ से गणित करना, कोडाकोड़ी कहलाता है, उससे कम हो स्थिति रह जाय, तथा बंधनेवाले कर्मों की स्थिति-अन्तः काडाकोड़ीके मंख्यासवें भाग बराबर कम होती जाय, अधिक न पड़े ) अर्थात उस समय से लगाकर आगे २ स्थिति घटती हो जावे, जबतक सम्यग्दर्शन प्राप्त न हो, और सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जानेके बाद भी वही क्रम जारी रहे। इसके सिताय प्रायोग्य लब्धि में कितनी हो पाप प्रकृतियोंका नया बंध होना भी मिट जाय । प्रकृतिबंधापसरण )। ऐसी अवस्थाका प्राप्त हो जाना ही प्रायोग्यलब्धि कहलाती है। इसीको काललब्धिके नामसे भी कहा जाता है। उसके अनेक भेद, सर्वार्थसिद्धि में बतलाये गये हैं देख लेना। ३४ प्रकृतिबंधापसरण होते हैं ऐसा लब्धिसारमें लिखा है किम्बहना ।
तब प्रश्न होता है कि क्या स्थितिका घटना सम्यग्दृष्टि प्राप्त होनेके पहले हो ( मिथ्यात्त्व के काल में ) होने लगता है कि सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने के बाद (पश्चात् ) होता है ? क्योंकि पंचलब्धियोंका काल तो मिथ्यात्वका काल है ।
इस प्रश्नका उत्तर निम्न प्रकार हैं---
(पहिलेसे ही होने लगता है) सम्मत्तहिमुहमिछो विसोहिधीहि चन्द्रमाणो हु।
अंतोकोडाकोडिं सतण्डं बंधणं कुणई ॥ ९ ॥ लब्धिसार । अर्थ :--'जो जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेके सन्मख होता है अर्थात् है तो मिथ्याष्टि किन्तु सम्यग्दर्शनकी प्रागभाव दशामें अवस्थित है, वह परिणामोंको विशुद्धता बढ़नेके सबब { प्रति समय निर्मलता या मन्दता बढ़ती जाती है ) आयु कर्मको छोड़कर बाकी ७ सात कर्मोका बंध, अंतः कोडाकोड़ी सागरको स्थितिचाला द्वितीयादि समयोंमें अर्थात् आमे २ पल्यके संख्यातवें भाग स्थिति घटाला हुआ करता है और ऐसा करता हुआ अन्तमुहर्त मात्र तकको स्थिति अन्तमें कर देता है। यह प्रायोग्यलब्धिका फल या माहात्म्य है, इसमें परिणामोंको मुख्यता है ।
यह पहिला क्रम { प्रक्रिया ) स्थितिबंधको कम करनेका है। इसीका दूसरा नाम (१) पहिला स्थितिबंधापसरण है। परन्तु इसमें यह विशेषता है कि जब कोई सम्यक्रवके सन्मुख मिथ्या- ...