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सभ्यग्दशन
असम्बन्धता नहीं कहा जा सकती किन्तु तादात्म्य सम्बन्ध परस्पर न होनेसे कचित् असम्बन्धता कही जा सकती है यह तात्पर्य है। निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध तो लोकमें ( समुदायावस्थामें अशुद्धोपयोग तक) प्रायः सभीका है अन्यथा लोकव्यवस्था ही सब बिगड़ जायगी ऐसा समझना चाहिए। हाँ, जन्यजनकता परस्पर नहीं होतो, उपादानउपादेयता नहीं होती यह तात्पर्य है किम्बहुना । परस्पर सापेक्षता इसीका नाम है अर्थात् साथ २ रहना और यथासम्भव एक दूसरेको मदद या सहायता देना बावा या विन खड़ा नहीं करना इत्यादि। गौण और मुख्य रूपसे अपनी २ सत्ता अशी कायम रखना पर भी सीमित है अनु । आठों कर्मोंका व नोकर्म, भावकर्मोका अनादिसे ऐसा ही तो निमित्तभंगितिक सम्बन्ध चल रहा है इति । तथापि भेद दोनोंमें रहा है, पर्याय भी जुदो २ होती हैं परन्तु संयोग अवस्थामें वे विकारी पर्या कहलाती हैं। खाने-पीने आदिके भाव होना जीवके विकारी भाव हैं पर्याय हैं तथा टट्टी पेशाब आदि पुद्गलके भाव (पर्याय ) हैं ऐसा समझना चाहिए किम्बहुना। निश्चय व्यवहार निविचिकित्सिल अङ्गका संक्षेप रूप नीचे देखो।
४.अमूढदृष्टि अंगका स्वरूप बताया जाता है
( अज्ञानता निकालना रूप) लोके शास्त्राभासे समयाभासे च देवताभासे । नित्यमपि तत्त्वचिना कर्तव्यममूहदृष्टित्वम् ॥२६॥
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पद्य
कचिवन्त सम्यग्दृष्टि को नहि मूकता करनी कभी । जोहों कुशास्त्र कुधर्म अरु जो हो कुदेवादिक सभी । निमलता वह अंग है सम्यक्त्यका सूचक सदा ।
इसके बिना खपिटुत कहा सम्यक्त्वका दरजा सदा ॥२६॥ अन्वय अर्थ---[ सवाचिना] वस्तुके स्वरूपमें रुचि या श्रद्धा रखनेवाले---सम्यग्दृष्टि जीवको [लोक शास्त्राभासे समयाभासे देवताभासे च लोकाचारमें अर्थात लौकिक प्रवत्तिमें (दूसरोंकी देखा-देखोसे) तथा खोटे । एकान्तपक्षी हिंसादि पोषक ) शास्त्रों में ( कशास्त्रोंमें ) कुधमों में और कूदेवोंमें [ नियमपि हर समय । अमुश्विं कर्तव्यम् ] महता नहीं करना चाहिये अर्थात परीक्षा और विवेकके साथ ( सावधानी पूर्वक ) मान्यता और सेवा करनी चाहिये, तभी उसके १. आत्मामें होनेवाले ( अन्तरंग ) रागादि विकारीभावोंसे भी धूणा या श्व नहीं करना कि ये बुरे है
इत्यादि, निश्चयनिबिचिकित्सित अंग है ( स्वाश्रित है ) तथा बाहिर पुरीषादि या शरीरादि परद्रव्यमें ग्लानि या द्वेष नहीं करना, व्यवहार निर्विचिकित्सित्त अंग है ऐसा खास भेद समझना चाहिए ॥२५॥
२. कुधर्म :
जामुद्धताका त्याग करना । अर्थात् अज्ञानता को छोड़ना व ज्ञानको उत्पन्न करना ।