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पुरुषार्थसिद्धपुराणं
कर सकते हैं क्योंकि संसारसागरमें सरह २ की भंवरे हैं अर्थात् तरह २ के विचारवाले जीव हैं तथा तरह २ के आचरण करते हैं यह परस्पर में भेद है-एकता नहीं है। अतएव अनादिमूढ़ Hourदृष्टि यह भूल गये हैं कि इस अगाध भयंकर संसार सागर से पार होने अर्थात् निकलनेका मार्ग ( उपाय ) क्या है ? यही निष्कर्ष आयेके श्लोक में बताया जाता है । यथा
इति विविधभंगगहने सुदुस्तरे मार्गमूढदृष्टीनाम् । गुरुवो भवन्ति शरणं प्रबुद्धनयचक्र संचाराः ॥५८॥
पद्म
अगम अथाह भयंकर दुस्तर भवसागर यह है भारी | भूल रहे हैं प्राणो इसमें कौन उपाय तरकारी ॥ गुरु ही एक उपाय शरण है जो नर हैं । Faraaree उनके द्वारा पार है ॥५८
अन्वय अर्थ - आचार्य कहते हैं कि [ इति विविधभंगगहने सुदुस्तर मार्गमुष्टीनाम् 1 पूर्व में बताये हुए धर्म व अधर्म, हिंसा व अहिंसा, निश्चय व व्यवहार, सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन, सम्यग् - ज्ञान, मिथ्याज्ञान, सम्यक्चारित्र, मिथ्याचारित्र, निश्चय अंग व्यवहार अंग, निश्चय मोक्षमार्ग व्यवहार मोक्षमार्ग, क्रियाकांड, ज्ञानकांड आदिमें भूले हुए व फसे हुए प्राणियोंसे भरे हुए संसारसागरमेंसे निकलने का मार्ग ( उपाय ) जिनको नहीं सूझ रहा है ऐसे अनादि मूढ़ मिथ्यादृष्टियों को [ नयचकसंचाराः गुरवः शरणं भवन्ति ] निकालनेवाले शरणसहाई, सद्गुरु ही होते हैं जो नय'चक्रको याने सच नयोको अच्छी तरह जानते हैं और उन्होंके आधारसे ( अपेक्षा ) से सब भूले 'मटके प्राणियोंको वस्तुस्वरूप ( धर्म अधर्म आदि ) समझा सकते हैं तथा उनका भ्रम ( अज्ञान ) मिटा सकते हैं एवं जो निःस्वार्थ या निरपेक्ष विरागी हैं यह सारांश कथन है | इसको समझकर असल में लगाना चाहिये । इसका दृष्टान्त जिस तरह कोई जीव यदि निर्जन भयंकर आपत्तियों के
१. तरह-तरह की लहरों गड्ढों और गहराई वाले ।
२. कठिनाई से तरने योग्य संसार सागरमें :
३. वारनेवाला |
४. ज्ञाता कुशल |
४. द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक, निश्चय व्यवहार आदि नय । ६. पार लगानेवाले ।
७. यह संसार भयंकर बनसम तरह तरह की सामग्री में भूल रहा जन faar सहाय free नहिं सकता, भवसे सद्गुरु के चरण सहाई वही उबारत
जटिल समस्याओंका घर है ।
तर वर है ।
नसे कोई जन । निमित्त बन ।