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पुरुषार्थसिद्धपा
( ग ) 'तर्कज्ञान --- व्याप्ति ( अविनाभाव ) के ज्ञानको तर्कज्ञान कहते हैं । व्यासिका अर्थ अविनाभाव है, अर्थात् एकके बिना दूसरा न रह सके ऐसे सम्बन्धको व्याप्ति कहते है, उसका ज्ञान हो जाना 'तर्कज्ञान कहलाता है । जैसेकि अग्निके बिना धूम नहीं रहता, आत्माके बिना चेतना नहीं रहती यह व्याप्ति है । इसीका नाम साहचर्यनियम यां अविनाभाव है ऐसा समझना । ( ध ) तुमज्ञान-पान ( हेतु) से ( अभीष्ट ) की ज्ञात होना, कहलाता है जैसेकि धुअस अग्निका ज्ञान हो जाना कि यहाँ अग्नि अवश्य होगी इत्यादि ।
अनुमानज्ञान
५३.०
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(ङ) आगमज्ञान आप्तके वचनों ( उपदेशों शब्दों को आगम कहते हैं, और उन arrier ज्ञान होना, आगमज्ञान कहलाता है। अथवा उन वचनोंके निमित्तसे वाच्यों अर्थाव पदार्थों का ज्ञान होना भी उपचार से आगमज्ञान कहलाता है । उसीके ( १ ) शब्दागम ( शब्दरूप निकलना ) ( २ ) अर्थागम ( पदार्थोंको बताना ) ( ३ ) ज्ञानागम ( उससे ज्ञानकी उत्पत्ति होना ) ऐसे तीन भेद होते हैं ।
दर्शनचेतना ( उपयोग ) के भेद ४
१ - त्रक्षुदर्शन, २- प्रचक्षुदर्शन, ३ अवधिदर्शन, ४ -- केवलदर्शन |
नोट - मन:पर्ययदर्शन, नहीं माना गया है, कारण कि उस ज्ञानके होने में उपयोग नहीं जोड़ना -- लगाना पड़ता है, अर्थात् उस ओर उन्मुख नहीं होना पड़ता है यह विशेषता पाई जाती है । अवधिज्ञानमें उस ओर उपयोगको लगाना पड़ता है तब वह जानता है अतएव उपयोगको ere are at 'अवधिदर्शन, कहलाता है यह मेद समझना अर्थात् अवधिज्ञानमें उपलोग लगाना पड़ता है और मन:पर्यय ज्ञानमें उपयोग नहीं लगाना पड़ता यह विशेषता रहती है अस्तु ।
तना या ज्ञान ३ भेव ( चेतनाएं )
ज्ञानका नाम चेतना है, उसके अनेक नाम हैं- जैसे ज्ञान, नेतना, अनुभव, निश्चय, अध्यवसाय इत्यादि । तदनुसार चेतना ( ज्ञान ) के ३ भेद कहे गये हैं यथा
( १ ) कर्मफल चेतना - अर्थात् बँधे हुए कर्मोंके उदय आनेपर जो फल ( सुख-दुःखादि अवस्था ) प्रकट होता है, उसकी वेदना या जानना या भोगना अनुभव करना, केवल इतनी ही शक्ति उसके रहती हैं, प्रतीकार या उपाय करनेकी शक्ति नहीं रहती कारण कि सानोंका अभाव रहता है। ऐसे एकेन्द्री जीव होते हैं ( स्थावर जीव ) ।
(२) कर्म चेतना - अर्थात् सुख दुःखादिको जानकर उसके संयोग वियोग करनेका उपाय
१. अन्यथानुपपत्वं यत्र तत्र येण किं । नान्यथानुपपत्त्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ?
अर्थ - अपर निश्चित अन्वयव्यतिरेक होता हैं, बहार और किसीकी ( पक्ष, हेतु, साध्यकी ) aretreat नहीं होती, बही सबसे बड़ा साध्यका साधक ( सूचक नियम है ऐसा सिद्धांत है समझना
चाहिये।