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पुरुषार्थलिश्रूयुपाय
है---प्रमाणिक है' इत्यादि । अतः श्रद्धामात्र से वह सम्यग्दृष्टि कहलाता है। अर्थात् एक श्रद्धान, स्वयं जानकर करना, और एक श्रद्धान, विना स्वयं जाने, आज्ञा मात्रसे करना, इनमें भेद है ! लेकिन सामान्यतः श्रद्धानकी अपेक्षा दोनों ही सम्यग्दृष्टि हैं। इसी आधार पर निसगंज व अधि गज दो भेद किये गये है । 'पुरुषप्रामाण्यात् वचनप्रामाण्य' ऐसा न्याय है अस्तु । पुरुष में प्रमाणता परीक्षापूर्वक विरोध रहित वचन ( कथन या उपदेश ) से ही होती है अतएव बढ़ भी आवश्यक है-करना चाहिये इत्यादि । किन्तु विपरीत अभिप्राय ( मिथ्यात्व ) से रहित होना सर्वश्र अनिवार्य है | निसर्गजका अर्थ, स्वयंबुद्ध, और अगिमका अर्थ बोधितबुद्ध, भी होता है किम्बहुना -..
५.२
सराग व वीतराग भेव
( ग ) रागके साथ जो सम्यदर्शन रहता है अर्थात् जो राग से उत्पन्न नहीं होता, किन्तु वीतराग से उत्पन्न होता है, परन्तु उसके साथ २ राग रहता है, उसको साग सम्यग्दर्शन कहते हैं। फिर भी श्रद्धानमें अन्तर नहीं रहता, अतएव वह मोक्षका मार्ग | उपाय ) माना जाता है । अन्तर सिर्फ देरीसे मोक्ष जानेका है, अर्थात् वह जबतक सराम सम्यग्दृष्टिको वीतरागता प्राप्त न होगी तबतक संसारमें ही रहेगा मोक्ष न जायगा इत्यादि ।
घ) रागके साथ जो सम्यग्दर्शन नहीं रहता रागको छोड़ देता है विरागके साथ रहता है, उसको वीतराग सम्यग्दर्शन कहते हैं वह जल्दी से जल्दी जोवको मोक्ष पहुँचा देता है यह भेद है।
सम्यग्दर्शन प्राप्त न होनेकी योग्यता ( सामग्री ) ( पंचल विधयोंका स्वरूप )
सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेके लिये पाँच लब्धियां (प्राप्तियाँ ) बतलाई गई हैं, जिनके प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है । उनके नाम १-क्षयोपशम २ - विशुद्धि, ३ – देशना, ४ --- प्रायोग्य, ५- करण इति ।
( १ ) 'क्षयोपशमला - ज्ञानावरणादि कमका विशेष क्षयोपशम होना, जिससे तत्त्वविचार किया जा सके अर्थात् तस्वविचारके योग्य बुद्धिविशेषका उत्पन्न होना, जो संज्ञी पंचेन्द्रिय हो सकता है, नीचेवाले जीवोंके नहीं हो सकता यह नियम हैं। ऐसी योग्यता प्राप्त हो जाना क्षयोपशमलब्धि है ।
१.
अपका अर्थ ----यसमानकाल में उदय आनेवाले सर्वघाती स्पर्धकों का उदयमें न आना ( रुक जाना ) तथा आगे उदयमें आनेवाले सर्वधात्री स्पर्धकोंके निषेकका उपशमरूप हो जाना, उदयमें नहीं जाना तथा शेष वर्तमान में सभी स्पर्धकोंका क्षय हो जाना क्षय अवस्था
देशात का उदयमें मौजूद रहना, दब जाना, उपशम अवस्था कहलाती है। कहलाती है, जो कर्माकी है अस्तु ।
क्षयोपशमा कहलाती है। वर्तमान में सभी पर्वों का