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सम्यग्दर्शन
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२- धर्मद्रव्य - जो जीव व पुद्गल दोनों क्रियावान् द्रव्योंके चलने में सहायता देती है, उसको धर्मद्रव्य कहते हैं 1 जैसे मछली चलने में जल सहायता देता है।
३ - अधर्मद्रव्य - जो जीव पुद्गल दोनोंको स्थित होने में सहायता देती है, उसको अध द्रव्य कहते हैं । जैसे पथिकको छाया मदद देती है ।
४-आकाश द्रव्य जो सभी द्रव्योंकी ठहरनेके लिए स्थान देती है, उसको आकाश द्रव्य कहते हैं ।
५—काल द्रव्य - जो सभी प्रयोको परिणयन या परिवर्तन करने में सहायता देती है, उसको कालद्रव्य कहते हैं । -- पञ्चास्तिकायके भेद 1
नोट-- उपर्युक्त छह द्रव्योंमेंसे कालद्रव्यको छोड़कर शेष पांच द्रव्ये अस्तिकाय कहलाती है कारण कि उनके प्रदेश परस्पर मिले हुए सदैव रहते हैं, पृथक नहीं होते । कालद्रव्य प्रदेश, एक २ पृथक रहते हैं -- इकट्टे नहीं रहते इत्यादि ।
आकाश द्रव्यके भेद
१---लोकाकाश, २-- अलोकाकाश | आकाशद्रव्य के प्रदेश यद्यपि अखंड ( मिले हुए) रूप रहते हैं तथापि आधे भूत पदार्थोंके सद्भावसे दो भेद माने जाते हैं । जहाँ पर बहों द्रव्यें संयोगरूपसे रहती हैं, उसको लोकाकाश कहते हैं और जहाँ पर एक अकेला आकाश ही रहता है, उसको अलोकाकाश कहते हैं ।
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१- निश्चयकाल द्रव्य
२- व्यवहारकाल द्रव्य ।
निश्चयकाल द्रव्य -- जो परिणमनस्वभाववाले मूल कालाणु हैं, उनको निश्चयकाल द्रव्य कहते हैं । जैसे रत्नोंकी राशि ( ढेर रूप ) पृथक २ रूप ।
२--व्यवहारकाल द्रव्य --जो मूल द्रव्य ( कालाणु) की पर्याएँ होती हैं समयादि रूप, उनको व्यवहारकाल द्रव्य कहते हैं, जिसके अनेक भेद होते हैं ।
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१- अणुरूप, २ स्कन्धरूप ।
१ अणुरूप जिसका परिमाण एक प्रदेशमात्र होता है, कम या बढ़ नहीं होता, उसको अणुरूप पुद्गलद्रव्य कहते हैं । उसमें रूप रस गंध स्पर्श रहता है । उसमें बहुप्रदेशी बननेको शक्ति संभावना सत्यरूप मानी जाती है । अर्थात् उसकी बहु प्रदेशरूप कार्यपर्याय प्रकट नहीं होती । फलतः स्कंध अवस्थामें भी उसका पृथक् २। मूल ) परिमाण उतना एक प्रदेशमात्र )