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पुरुषार्थसिद्धये
है और पूछता है कि विद्यार्थिन् । २ और २ दो कितने होते हैं ? विद्यार्थी तुरन्त उत्तर देता है कि साहब ! ४ चार होते हैं। इसपर वह परीक्षक उसकी बुद्धिकी परीक्षा करने को पुनः पूछता है कि विद्यार्थिन् ! तुमारा उत्तर गलत है, तीन और एक ३+१मिलाकर चार होते हैं। यह सुनकर निशार्थी भ्रम में पड़ जाता है कि गुरूजीका बताया सत्य है कि आफीसर साहबका बताया सत्य है ? यह निर्धार न कर पाने से निरुतर रह जाता है व अचक जाता है अथवा कह देता है कि हमें तो गुरुजीने ऐसा ही बताया था कि दो और दो चार होते हैं । तब साहब (परीक्षक ) समझ जाता है। कि यह विद्यार्थी भबुद्धि है, स्वयं परीक्षा ( निर्णय ) नहीं कर सकता, खाली रट लेता है इत्यादि । पश्चात् जब वही बात ( प्रश्न ) दूसरे तीव्र बुद्धिवाले छात्रसे परीक्षक पूछता है तब वह निःशंक होकर जवाब देता है कि साहब दोनों सही हैं २ दो में २ दो मिलाने पर भी चार ४ होते हैं और २ तीन में १ मिलाने पर भी ४ चार होते हैं, कारण कि वह जोड़ आदि हिसाब खुद जानता था । साहब उसको बुद्धिमान समझकर खुश होता है व इनाम भी देता है। बस ऐसा ही हाल स्वाधिगमन व पराधिगमका है। स्वयं परीक्षा करना या जानना श्रेष्ठ होता है ।
atara aers भेव
१ संसारी, २ सिद्ध ( मुक्त ) | संसारियों में अस व स्थावर । त्रसोंमें दो इन्द्री पञ्चेन्द्री तक ४ भेद | अथवा भव्य या अभव्य । भव्यों में निकट भव्य, व दूर भव्य, व दूरानदूर भव्य, ये तीन भेद होते हैं । निकट भव्य ( व्यक्त सम्यग्दृष्टि ) तद्भव मोक्षगामी या दोन्चार भवमें ही मोक्ष जानेवाले होते हैं | दूर भव, ( अव्यक्त सम्यग्दृष्टि ) कई भवों के बाद मोक्ष जाने वाले होते हैं । दुरानदूर भव्य, कभी मोक्ष नहीं जाते सिर्फ उनके मोक्ष जानेकी शक्ति मात्र रहती है जिससे वे भव्य कहलाते हैं किन्तु उनकी शक्ति कभी व्यक्त नहीं होती अर्थात् कार्यपर्याय प्रकट नहीं होती अतएव वे सदाकाल अभव्योंकी तरह संसारमें ही निवास करते हैं। अभव्य जीवोंके उस जातिकी शक्ति ही नहीं रहती, जिससे वे मोक्ष जा सकें । ये सब शक्तियां पारिमाणिक भावरूप है- स्वामीविक व अकृत्रिम हैं, नैमित्तिक या अधिकादि रूप नहीं हैं, यह वस्तुका स्वभाव है इत्यादि । अशुद्ध भेदोंमें बहिरात्मा जीव हैं | और शुद्ध परमात्मा है । परमात्मामें सकल परमात्मा तथापि सभी द्रव्योंमें जीव द्रव्य, ज्ञानवान्
संयोगी पर्याय शुद्ध व अशुद्ध दो भेद माने जाते हैं । मेदोंमें अपूर्ण शुद्ध - अन्तरात्मा हैं और पूर्ण शुद्ध अरहन्त हैं और निकल परमात्मा सिद्ध हैं इत्यादि चेतन होनेसे श्रेष्ठ द्रव्य है किम्बहुना ।
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द्रव्योंके भेद
१ जीवद्रव्य, २ पुल द्रव्य, ३ धर्म द्रव्य ४ अधर्म द्रव्य, ५ आकाश द्रव्य, ६, काल द्रव्य, ari ata aorat छोड़कर शेष ५ द्रव्यें अजीव द्रव्यें हैं (जनशून्य जड़ हैं ) । इनका लक्षण निम्न प्रकार है ।
१- पुद्गल द्रव्य -- जो द्रव्य घटती-बढ़ती है अर्थात् मिलती बिछुड़ती है, उसको पुद्गल द्रव्य कहते हैं। या संयोगी पर्याय जिसके होती है या विकार रूप होती है ।