________________
पुरुषार्थसिमुपाय ही रहता है, वह अधिक क्षेत्र नहीं घेर लेता। हाँ, संकोच विस्तार शक्ति उसमें मानी गई है जो स्कंध पर्यायके समय कार्य करती है अर्थात् अपना परिचय देतो है-स्कंध अवस्थामें हो संकोच विस्तार होता है, पृथक अवस्था नहीं यह तात्पर्य है अस्तु
२.-स्कंधरूप पुद्गल----अनेक परमाणुओंके परस्पर मिलने से अर्थात् अपने २ रूप रस गंध स्पर्श के द्वारा परस्पर संयोग होनेसे, जो स्कंधरूप पिड अवस्था उनकी होती है, उसको स्कंधरूप पुद्गलद्रव्य कहते हैं।
__ सामान्यतः पुदगलद्रव्यके ६ छह भेद १--सूक्ष्मपुदगल-जो पृदगलटव्य (परमाणु या स्कंधरूप ) दृष्टिगोचर न हो अर्थात् देखनेम न आवे, उसको सूक्ष्मपुद्गल कहते हैं, जैसे कार्माणद्रव्य आदि ।
२. स्थूलपुद्गलद्रव्य, जो दृष्टिगोचर हों व अन्यत्र ले जाये जा सकें, उनको स्थूल पुद्गल कहते हैं जैसे घृत, दूध, पानी आदि ।
३--सूक्ष्मस्थूल पुद्गलद्रव्य-जो दृष्टिगोचर तो न हों ( आँखोंसे न दिखें ) किन्तु कानों आदिसे सुने जाय, ग्रहण किये जाय, या जाने जाय, उनको सूक्ष्मस्यूल पुद्गलद्रव्य कहते हैं । जैसे शब्द गंध आदि ।
४-स्थूलसूक्ष्म पुद्गलद्रव्य---जो दृष्टिगोचर तो हों किन्तु पकड़ने में न आवे उनको स्थूलसूक्ष्म पुद्गलद्रव्य कहते हैं। जैसे प्रकाश छाया अन्धकार आदि।
५-स्थूलस्थूल पुद्गलद्रव्य----जो दृष्टिगोचर हों, लोडेफोड़े जाय एवं अन्यत्र लेजाये जा सकें किन्तु पुनः जुड़ न सके, उनको स्थूलस्थूल पुद्गलद्रव्य कहते हैं । जैसे पत्थर काष्ठ इत्यादि ।
६-सूक्ष्मसूक्ष्म पुद्गलद्रव्य-जिनकी शक्तिका अर्थात् अविभाग प्रतिच्छेदों का और दूसरा भेद न हो सके न किया जा सके, उन पदार्थों को सूक्ष्मसूक्ष्म पुद्गलद्रव्य कहते हैं । जैसे परमाणु जघन्य गुणवाले, जिनका बंधन न हो सके ( बंधके अयोग्य पुद्गलके निबंध परमाणु ) दो मुण कम से कम अधिक हों तो बंध होता है अन्यथा नहीं।
नोट-पुद्गलद्रव्यके अनेक तरहके परिणमन (पर्याय ) होते हैं जैसे कि कभी स्थल कभी सूक्ष्म, कभी कठोर, कभी कोमल, कभी तरल, कभो श्रिमा हुआ ऐसा समझना चाहिये यह वस्तुका स्वभाव है किम्बहुना।
संक्षेपमें निश्चय और व्यवहारका निर्धार-जीवद्रव्यमें (१) रागद्वेषादिक विकल्पोंसे रहित-निकिल्प वीतरागमय "निर्णयात्मक दशा' का नाम निश्चय है। जो स्वाश्रित स्वभावरूप है ।
(२) रागद्वेषादि विकल्पों सहित विकल्प सरागतामय 'निर्णयात्मक दशा' का नाम -