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सम्यग्दशन
परावर्तन मात्र है ( अधिककी म्याद नहीं है) उतभेमें योग्यता प्राप्त कर कभी भी मोक्ष जा सकता है। इस तरह बार-बार सम्यग्दर्शन प्राप्त होकर बार २ छूटनेपर अर्धपुद्गल परावर्तनकालमेंसे धरती होता ही जायगा ऐसा समझना चाहिए। पुरा अर्धपुदगल परावर्तनकाल, पहली बार सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेवाले सम्यग्दष्टि जीवके माना जाता है, सभीके नहीं यह तात्पर्य है। जनन्यकाल मध्यम अन्तर्मुहूर्तका है।
नोट-अन्त: कोड़ाकोड़ी सागरको स्थिति प्रायोग्य लब्धिसे लेकर सम्बग्दर्शन प्राप्त हो जानेतक होती है अर्थात् आगे भी होती है और पीछे भी होती है कोई एक नियम नहीं है । लेकिन कारणकार्यभाय करण लब्धिके साथ ही सम्यग्दर्शनका है अन्यके साथ नहीं यह तात्पर्य है इति ।
सभ्यग्दर्शनका महत्व ( निष्कर्ष ) आ संसारत एवं धावसि परं, कुर्वेऽहमिन्युक्लर्कद्वारं ननु मोहिनामिह महाहकाररूपं समः ॥ सद्भतार्थपरिग्रहेण विलयं अधेशवार बजेत ।
सरिक ज्ञानधनस्य बन्धनमहो भूयो भवेदारमन:?:५५।। समयसारकलश । करणलब्धिके द्वारा किस प्रकार मिथ्यात्व द्रव्य नष्ट होता है ? इसका प्रदर्शन किया जाता है।
('निमित्त कत्तुं त्वको अपेक्षा चर्चा है ) जिस भव्य योग्यता सम्पन्न जीवको सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेवाला होता है, उसके पांचवीं करणलब्धि (योग्यपरिणामोंकी प्राप्ति होती है अर्थात जिन विशेष परिणामोंके निमित्तसे मिथ्यावद्रव्य हटकर सम्यग्दर्शन प्राप्त होना है वे सर्वोत्कृष्ट नम्बर ३ के 'अनिवृत्तिकरण' नामके अतिनिर्मल परिणाम उत्पन्न होते हैं। उनके निमित्तसे, क्रमशः ७ सात आवश्यक कार्य पूर्व में होते हुए---आठवा कार्य अन्तरकरण (दुर करना या यहाँ वहाँ हटाना ) और नवमां कार्य, उपशम करना रूप किया जाता है या होता है। तब उदयकालमें मिथ्यात्व द्रव्यके निषेक मौजूद न १. किमन्तरकरणणाम ? विपनिलय कम्माणं हेनिमोवरिमट्टिदीओ मोत्तम मन्दो अन्तोमुटुसमेताम् । द्विधौणं परिणामक्सिसेण णिसेगाणामभावीकरणमंतकरणमिदि भण्णदे ।।
जयधवल अ० १० ९५३ अर्थ : विवक्षित कमों के निषेक, जो आगे समत्रोंमें उदयमें आवेंगे तथा पिछले समयोंमें उदयमें आ चुके हैं,
उनको छोड़कर वर्तमान कालमें जो उदयमें आने योग्य हो, उनको अन्तर्मुहूर्त के लिये उदयके अयोग्य कर देना या दुर हटा देना अन्तरकरण कहलाता है। उसमें निमितकारण जीयके विशेष
निर्मल परिणाम होते हैं इति । अथवा--अधिक स्थितिबाले और कम स्थितिवाले (उत्कृष्ट व जघन्य स्थितिवाले) निषेकको छोटकर
मध्य स्थितिघाले ( मध्यवर्ती ) कर्मोको उदयके अयोग्य करना अन्तरकरण कहलाता है समझ लेना।
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