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जीवण्यका लक्षण
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अतएवं उसके साथ मिथ्यादर्शन या मिथ्याश्रद्धानका होना सम्भव है असम्भव नहीं है । इसके सिवाय विशेषज्ञान ( भेदज्ञान या प्रत्यक्ष ज्ञान ) के बिना जो श्रद्धान अवश्यम्भावी है वह तो होगा ही, क्योंकि झान जीबका स्वभाव है । अतएव ज्ञानपूर्वक श्रद्धानका होना अनिवार्य है अथवा श्रद्धान शालकी पर्याय है सो ज्ञानके साथ वह अविनाभावरूपसे रहेगा ही किम्बहुना विशेष षड्खंडागम पुस्तक १ सूत्र ४३ में समझ लेना )।
मिथ्यात्वके सात भेद (१) ऐकान्तिक मिथ्यात्त्व ( सिर्फ एक कोटि या धर्मका ज्ञान होना कि वस्तु इसी का है) ( २ ) सांशयिक मिथ्यात्व ( दो कोटियोंमेंसे किसी एक कोटिका भी निश्चय नहीं होना )। ( ३ ) मूमिथ्यात्व ( किसी वस्तुका स्पष्ट ज्ञान नहीं होना-अनध्यवसायरूप ज्ञानका होना) { ४ ) व्युदनाही मिथ्यात्व ( गहीत मिश्याटवे, नई २ मिथ्यात्व पोषक क्रिया में चिका
होना )। ( ५ ) स्वाभाविक मिथ्यात्व ( अगृहीत मिथ्यात्व, अपने आप अनादिसे विपरीत ज्ञान
होना )। (६ ! वैनयिक मिथ्याल ( मब चीजों में समान विनयादि करना-उनमें भेद न मानना )। (७) विपरीत मिथ्यात्व ( भ्रमका होना----जैसे रस्सी में साँपका ज्ञान हो जाना आदि )।
चारित्रका दूसरा लक्षणा---( वीरसेनाचार्य कथित षट् खण्डागमटीका } 'पापक्रिपाभिवृतिश्चारित्रम्' अर्थात् पापक्रियाओंका टूटना ही चारित्र कहलाता है। यहाँ पर पाप, घातिय कर्मोको समझना चाहिये तथा मिथ्यात्त्व, अविरति, प्रमाद, कषाय ये चार पापक्रियाएँ हैं। पाक इनके द्वारा ही धातिया कर्मों का आस्रव व बंध होता है। धातिया मिथ्यात्व कर्मों में मुख्य कर्म, मोहनीय है और पाप क्रियाओं में मुख्या पाप क्रिया है। जिस भाव ! परिणाम ) से आत्मा के अनुजीवीगुणोंका पात हो, उन्हें पाप कहते हैं। चाहे वह भाव शुभरूप हो अशुभरूप हो, दोनोंसे आत्माकी असली दशा र शक्ति बोतगग विज्ञानताको व्यक्तिरूप । का घात होता है। अतएव मिथ्यात्वादि चाने प्रकार के भावोंका भेद प्रभेद सहित अभाव होना 'सम्यक् चारित्र' कहलाता है। उसके होने पर ही मुक्ति होती है जब वह पूर्ण { विकल्पशून्य स्थिर ) हो जाता है ।। घट्खंडागम सूत्र २२ पुस्तक ६11 साधारण रूपसे विषय और कषाय दोनों पापरूप हैं ऐसा कहा गया है।
चारित्र के २ भेद-मुख्य । (१) स्वरूपाचरण चारित्र (२) संयमाचरण चारित्र।
स्वरूपाचरण चारित्रके भेद--(१) आंशिक ( अपूर्ण ) (२) समग्र (पूर्ण)
नोट-इनका खुलासा तत्तत् प्रकरण में किया जायगा, यहाँ पर अभी नाममात्र सामान्यरूप कहा गया है।