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पुरुषार्थसिद्धथुपाय . मिथ्यावृष्टियों व सम्यग्दृष्टियों के भेद व उनका अस्तित्त्र ( क ) मिथ्यादृष्टि २ दो तरह के होते हैं--(१) अनादिमूढ़ मिथ्यादृष्टि (२) सादि मह मिथ्यादष्टि अथवा अनादि अनन्त मिथ्याष्ट्रि... अनादि सात मिध्यादष्टि | जैसे निगोदिया--कोई अनादि अनन्त होते हैं व कोई अनादिसान्त होते हैं ( भिगोदका अर्थ सम्मूच्र्द्धन जन्म होता है ) 1 एकेन्द्रीसे लेकर असैनी पंचेन्द्रियलक सभी जीव, प्रायः अनादिमढ़ मिथ्याष्ट्रि ( अगृहीत मिथ्यादृष्टि ) माने जाते हैं, कारण कि उनके 'आप्त-आगम-पदार्थोंका ज्ञान नहीं होता क्या आप्त है क्या आगम है क्या पदार्थ है यह वे नहीं समझते । तथा संज्ञी पञ्चेन्द्री जीवोंके यथासम्भव सभी मिथ्यात्वके भेद पाये जाते हैं (खुलासा षटखंडागम पुस्तक १ सूत्र ४३ में देख लेना)! .
(ख ) सम्यग्दृष्टि ३ तीन सरहके ९ नो तरहके. २ दो तरहके होते हैं । किन्तु सभी संजी जीवोंको सभी सम्यग्दर्शन नहीं होते। क्षायिक सम्यग्दर्शन केवली व श्रुतकेवलोका निमिस मिलने बाला ( मनुष्या) के ही होता है यह विशेषता है। वह निमित्तता अपनो अपेक्षासे भी मिलती है पर की अपेक्षा से भी मिलती है इत्यादि, सम्यादर्शनके १० भेद भी होते हैं।
ज्ञान और श्रद्धानके विषय में शंका समाधान सामान्यतः श्रद्धान ज्ञानपूर्वक ही होता है, विना ज्ञान के नहीं होता ऐसा नियम है । इस प्रकार माननेपर यह शंका होती है कि जब पूर्वमें यह बताया गया है कि एकेन्द्रियादि असेनी पर्यन्त जीवोंके आप्त, आगम, पदार्थोंका ज्ञान नहीं होता तब क्या उनके उनका श्रद्धान हो सकता है ? यदि श्रद्धान होता है तो यग्दृष्टि क्यों नहीं हो सकते, क्या प्रतिबन्ध है ? इसके सिवाय ज्ञानपूर्वक श्रद्धान होता है यह नियम खंडित होता है इत्यादि ? इसका समाधान यह है कि सामान्य ज्ञान वेतनालक्षण, सभी जीवोंके सदैव रहता और सामान्य श्रद्धान ( बनिरूप पर्याय ) भी रहा करता है। अतएव ज्ञान व श्रद्धानका समन्वय (संगम ) खंडित नहीं होता। हाँ, विशेष ज्ञान अर्थात् भेदशान या प्रत्यक्ष ज्ञान ये हमेशा हर जीवके नहीं होते तथापि परोक्ष ज्ञान ( अनुमान-आगम आदि) बराबर सैनी जोबके रहा करते हैं या श्रुतज्ञान सभीके रहा करता है, तब ज्ञानपूर्वक श्रद्धान होने में कोई बाधा ( आपत्ति ) नहीं आती । फलतः सम्यश्रद्धान ( विशेषश्रद्धान ) सम्यग्ज्ञान ( भेदज्ञान) पूर्वक बराबर होता है चाहे वह सम्यग्ज्ञान परोक्ष ही क्यों न हो ऐसा समझना चाहिये । अतएव असैनी जीवोंसक आप्त आगमके ज्ञान विना उनका सम्यक् श्रद्धान नहीं हो सकता।
इसके सिवाय एकेन्द्री आदि जीवोंके मिथ्यादर्शन ( विपरीताभिनिवेश) कैसे पाया जा सकता है जब कि उनके आप्त-आगम-पदार्थोंका ज्ञान ही नहीं होला, और मिथ्यादर्शन माना अवश्य गया है, यह एक प्रश्न है ? इसका भी समाधान इस प्रकार है कि अनादिमूढ़ मिथ्यात्व तो उनके होता है क्योंकि उस समय भी उनके अन्य अज्ञानरूप निरावरण सामान्यज्ञान पाया जाता है,
१. आशामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रबीजसंक्षेपात् ।
विस्तारार्थाभ्यां भवमवगाउपरमावगाः च ॥११॥ आत्मानुशासन । नोट--प्रत्येकका लक्षण वहीं देख लेना--अन्य बच आयमा अस्तु ।