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সুহাল अवश्य माना जाता है व मानना चाहिए । अर्थात् निश्चय श्रद्धामें कोई विकल्प नहीं होता और व्यवहारश्रद्धा में विकल्प होता है जो व्यवहारका रूप है । ऐसा होनेपर भी दोनों प्रकारके सम्म ग्दर्शनोंमें सम्यकथद्धा ( विपरीताभिनिवेशरहित ) होनेसे दोनों कथंचित् प्रामाणिक या मोक्षके मार्ग समझे जाते हैं--प्रद्धामें विपरीतता न होनेसे । यदि कहीं श्रद्धामें विपरीतता हो जाय तो निःसन्देह मोक्षमार्गता नष्ट हो जाय । जैसे लिपीके श्रद्धा विपरीतता होनेसे वह व्यवहारनयसे भो मोक्षमार्गी नहीं माना जा सकता। इत्यादि
विशेषार्थ -यद्यपि यह पूरा लक्षण (विपरीताभिनिवेशरहित तत्वार्थ श्रद्धान ) निश्चयसम्यग्दर्शनका है, तथापि कारणमें कार्यका अरोप होनेसे व्यवहार या उपचाररूप भी है, यह विशेषता है । इसके सिवाय जबतक सात तत्त्वोंका श्रद्धान विपरीत अभिनिवेश ( श्रद्धान ) से रहित न हो, तबतक मुख्यरूप कारणके सद्भावमें अकेले तत्वार्थश्रद्धानको सम्यग्दर्शन मानना या कहना भी सरासर उपचार या व्यवहार समझना चाहिए। सारांश यह कि 'सम्यग्दर्शन रूप कार्य, तत्त्वार्थश्रद्धानरूप मुख्य कारण, तथा विपरीत श्रद्धानसे रहित नियमरूप ( अविनाभावो ) कारण, के सद्भावमें ही होता है अन्यथा नहीं । तब विपरीत अभिप्राय ( श्रद्धान ) रहित तस्वार्थ श्रद्धानमात्रको हो, जो कारणरूप है-उपचारसे या उमेद शिक्षा सम्म (बार्ग, मान लेना व्यवहार नहीं तो और क्या है ? विचार किया जाय !
नोट--विपरीताभिनिवेश रहितका अर्थ है, अगृहीत मिथ्यास्त्रका छूटना।
श्रद्धाभेद न होनेसे ही ४ चार भेद बताये गये हैं ( विपरीत श्रद्धा नहीं होती ) अर्थात् सम्यग्दर्शनके अनेक तरहसे शास्त्रोंमें भेद बताये गये हैं जैसे कि सर्वार्थ सिद्धि टोकामें उपशमक्षयोपशम-क्षायिक' तीन भेद बतलाये गये हैं, षट्खण्डागममें भी ये ही ३ तीनों भेद बतलाये गये हैं, राजवातिक, श्लोकवातिक सभी में इनका उल्लेख है तथा आत्मानुशासनमें १० भेद बसलाये गये हैं ( आज्ञासम्यक्त्वादि ) नाटक समयसार भाषाछन्दोबद्धमें ९ भेद बसलाये गये हैं। सराग वीतराग भेद तो सर्वत्र कहे गये हैं। इसके सिवाय निम्न ४ चार भेद भी बतलाये गये हैं। अस्तु । इन सबमें मलकारण तो एक है और वह 'विपरीताभिनिवेशरहित है अर्थात् विपरीताभिनिवेश ( मिथ्या भाव या धनान ) नष्ट हुए बिना सम्यग्दर्शन नहीं होता अतः विपरीताभिनिवेशका क्षय ( अभाव ) होना ही चाहिए यह अनिवार्य है सो वह सभी सरहके सम्यग्दर्शनों में चाहे वह निश्चय सम्यग्दर्शन हो या व्यवहार सम्यग्दर्शन हो, रहना जरूरी है, उसमें विवाद ( मतभेद ) नहीं हो सकता यह ध्रुव है। सिर्फ प्रयोजन भेद बतानेके लिए ४ चार भेद, चार तरह के माने गये हैं सो समझना चाहिए।
१. क्षायिक सम्यग्दर्शन, कर्मभूमिया मनुष्यणी अर्थात् द्रव्य स्त्री मनुष्यके भी होता है पर्याप्तक दशामें, इसमें
सन्देह नहीं करना । जोधकाण्ड गोम्मटसारकी गाथा नं० ७०४ तथा आगे ७१२ आदिमें भी देख लेना . संस्कृत्त टीका एवं पं० टोडरमल्लजी कुत भाषा-दीका खुलासा लिखा है। लेखक ।