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पुरुषार्थसिद्धयुपाय वह ज्ञानचेतना है ( आत्मचेतना है ) और जो कर्म अर्थात् क्रिया को जाने ( प्रवृत्ति निवृत्ति करावे ) वह कर्मचेतना है तथा जो कर्मके फल सुख-दुःखको जाने-ज्ञान करावे, वह कर्मफल नेतना है । इन तीनोंमेंसे 'ज्ञानचेतना' सिर्फ सम्यग्दष्टि के होती है ऐसा कहा गया है। क्योंकि स्त्र और परका भेद विज्ञान सिवाय सम्यग्दृष्टिके और किसीको नहीं होता अर्थात् सत्यार्थ नहीं होता जो हितकारी है। परसे भिन्नताका ज्ञान होना सम्यग्दष्टिका ही कार्य है मिथ्याष्टिका नहीं है । मिथ्यादृष्टिके विपरीत ज्ञान होने से वह अपने आत्माको परसे भिन्न नहीं जानता मानता, अपितु पर रूप ही जानता मानता है, जैसी संयोगीपर्याय है तद्रूप हो जानता है इत्यादि । फलतः वस्तुका या आत्माका स्वरूप, परसे अर्थात् रूप रसादिक पुद्गलके गुणोंसे पृथक् है अर्थात् तादात्म्यरूप { अभिन्न या एकात्वरूप ) नहीं है । और अपने गुणपर्यायोंके साथ हमेशा रहता है ( एकत्वरूप है) तथा उत्पाद व्यय प्रौव्य इन तीन साधारण गुणोंबाग है, जो सभीमें (द्रव्य मात्रमें ) रहते हैं, कारण कि वे द्रव्यका स्वभाव हैं। 'सत् द्रव्यलक्षण उत्पादच्ययोध्ययुक्तं सत्' ऐसा द्रव्यका लक्षण कहा गया है । (तस्वार्थसूत्र अध्याय ५वाँ सू० २९, ३०)
प्रत्येकका लक्षण निम्न प्रकार है-- ( १ ) नवोन पर्यायकी उत्पत्ति होना, उत्पाद कहलाता है जो समय २ होता है वस्तुका स्वभाव है 1
(२) व्यय-प्रति समय जो पूर्व पर्याय का विनाश ( अभाव ) होता है वह व्यय है।
(३) ध्रौव्य... जो हमेशा स्थिर ( कायम ) रहता है वह ध्रौव्य है ऐसी चीज द्रव्य है। अर्थात् मूलभूत वस्तु है । परन्तु वह भी परिणामी ध्रुव ( नित्य ) है कूटस्थ नित्य (ध्रुव) नहीं है जैसा कि अन्य मतवाले मानते हैं।
(४) गुण-जो द्रव्यके आश्रय ( आधार ) रहते हैं और जिनमें गुण नहीं रहते (द्रव्या. श्रयाः निर्गुणा: गुणाः, तत्त्वार्थसूत्र ५-४१)।
(५) पर्याय जो बदल करके भी तद्रप ( द्रव्यरूप ) रहे, अन्यरूप न हो इत्यादि ( 'तद्भावः परिणामः, त० सूत्र ५-४२) अर्थात जैसी द्रव्य हो वैसी हो पर्याय होतो है (परिणाम होता है)
पर्यायके भेद---- ( १ ) अर्थपर्याय---जो प्रति समय बदलती रहती है, प्रत्येक गुणको अवस्था परिवर्तित होती है । ( एक समयकी है ) ।
१. अशुद्धा चेतना वेधा सधथा कर्मचेतमा ।
वेतनस्थात् फलस्यास्थ स्यात्कर्मफलचेतना ।।१९५॥ --पंचाध्यायी उत्तरार्ष : अर्थ-चेतनाके मूल में दो भेद हैं (१) शुद्धचेतमा (२) अशुद्धचेतना । अशुद्धचेतनाके दो भेद है (१) कम चेतना (२) कर्मफलतना । शुद्धचेतनाका (१) एक भेद ज्ञानचेतना, ज्ञानका अर्थ आत्मा है। अभेष
विवक्षासे ।