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पुरुषार्थसिद्धयुपाये { मान्यता ) होती है, एवं उस समय रागद्वेषादि होनेसे पुनः नया बन्ध होता है ऐसी शृंखला चलती रहती है इत्यादि सब जीवके भावरूप कर्मों ( परिणामों ) का ही फल ( कार्य ) है ऐसा समझना चाहिये तभी तो उक्त तीनोंको ( द्रव्यकर्म-मोकर्म-भावकर्मको) हेय बतलाया गया है। आत्मानुशासन में 'परिणाममेव कारणमाहुः खलु पुण्यपापयो: प्राशाः स्पष्ट कहा गया है अस्तु ।
नोट-कर्मके उत्तर भेदोंका वर्णन आगे यथावसर पृथक् रूपसे कहा जायेगा सो समझ लेना यहाँ विस्तार भयसे नहीं लिखा गया है ऐसा समझना ||१२||
ब्यवहारनवसे जिस प्रकार जीवद्रव्यके विकारीभाव ( रामादि ) कर्मपर्यायके उत्पन्न होनेमें निमित्त कारण माने जाते हैं उसी प्रकार पदाल द्रव्यमी मार्य म वर्ग का उदय भी जीवद्रध्यके विकारीभावोंके होने में निमित्तकारण होता है यह बताया जाता है--
परिणममानस्य चितश्चिदात्मकैः स्वयमपि स्वकै वैः । भवति हि निमित्तमात्र पोद्गलिक कर्म तस्यापि ॥१३॥
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जीव सक्ष चेतनभावों परिणमता है स्वयं अहो । अतः उन्हींका कत्ता है वह निश्चयसे यह तुम्ही कहो।। है मिमित्तकारण उसमें भी जब विभाष उ8के होते।
पुद्गलकम उदय आनेपर रागादिक प्रकटिस होते . १३ ।। अन्वय अर्थ--[ अॅप ] और भी आचार्य शेष कहते हैं कि [ चिदात्मकः स्वकै भावैः स्वयमपि परिणममानस्य चिस: ] जो जीव ( निश्चयो ) ज्ञानदर्शनरूप में चैतन्य भावोंके द्वारा ( सहित ) स्वयं परिणमन करता है उसके विकाररूप परिणमनमें ( रागावोंके होने में ! यथार्थतः [ पौद्गलिक कर्म निमित्तमात्रं भवति ] द्रव्यकर्म, अर्थात् पुद्गल कर्मरूप पर्याय जो उदयमें आती है वह निमित्तकारण बन जाती है । अर्थात् जीवके राग रूप विकारीभात्रोंका और पुद्गलमय द्रव्यकर्मोके उदयका परस्पर निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध मान ला है ।।१३॥
__ भावार्थ-संयोगोपायमें जीवद्रव्यके बिकारीभाव, पुद्गलद्रव्यके वि भावों (पर्यायों ) के होने में सिर्फ निमित्तकारण होते हैं ( उपादानकारण नहीं होते, उप कारण स्वयं वह पुद्गलद्रव्य होती है ) और पुद्गलद्रव्य अथवा पुद्गलद्रव्यको कर्मरूप पर्यायो दय, जीवद्रव्य के विकारीभाव होने में सिर्फ निमित्तकारण होता है किन्तु उपादान कारण स्वयं व्य है क्योंकि उसीमें वैसा विकाररूप परिणमन होता है और वह योग्यतानुसार समय पर पता है क्योंकि पर्याय ( भाव ) प्रति समय बदलती है एक-सी स्थायी ( कूटस्थ-नित्य) नहीं यह नियम है जो अन्यथा नहीं हो सकता। जीव और पुद्गल दो द्रव्यों ही ऐसी हैं जिनाम अवस्थाके समय विकाररूप (अशुद्ध ) परिणमन होता है शेष द्रव्योंमें विकारी परिण नहीं होता।