Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ : गा०३
यहाँ कुछ कम का मतलब आठ वर्ष, सात मास और अन्तमुहूतं प्रमाण है । सत्तास्थानों के स्वामी, काल आदि का विवरण इस प्रकार हैसत्तास्थान | मूलप्रकृति , स्वामी ।
काल
| अपत्य । उत्कृष्ट आठ प्रकृतिक सभी | आदि के ११ | अनादि-सान्त | अनादि-अनन्त'
गुण स्थान
सात प्रकृतिक मोहनीय के क्षीणमोह । अन्तर्मुहूर्त । अन्त मुहूर्त
| बिना गुणस्थान चार प्रकृतिक ४ अघाति | १३वा, १४ाँ | अन्तर्मुहूर्त / देशोन पूर्वकोटि
गुणस्थान । इस प्रकार मूल प्रकृतियों के पृथक्-पृथक् बन्ध, उदय और सत्ता प्रकृति स्थानों को समझना चाहिए । अब आगे की गाथा में मूलको के संवैध भंगों का कथन करते हैं । मूलकर्मों के संवैध भंग
अट्ठविहसत्तछबंधगेसु अठेव उवमसंताई ।
एगविहे तिविगप्पो एगविगप्पो अबंधम्मि ॥३॥ १. घातिकर्मचतुष्टयमये च चतसृणां सत्ता, सा च जघन्य नान्तमुहूर्तप्रमाणा,
उत्कर्षण पुनर्देशोनपूर्वकोटिमाना । —सप्ततिका प्रकरण टीका, १४३ २. तुलना कीजिये
अढविहसत्तछर्बध गेस अठेव उदयकम्मंसा । एयविहे विधियापो एप वियप्पो अबंधम्मि ।। -गो० फर्मकाण्ड, ६२८
– मूल प्रकृतियों में से शानावरण आदि भाउ प्रकार के बन्ध वाले अथवा सात प्रकार के बन्ध वाले या छह प्रकार के बन्ध बाले जीवों के उदय और सत्त्व आठ-आठ प्रकार का जानना । जिसके एक प्रकार मूल प्रकृति का बन्ध है उसके तीन भेद होते हैं। जिसके एक प्रकृति का भी बन्ध नहीं होता उसके उदय और सत्त्व चार-चार प्रकार के होने से. एक ही विकल्प है।