Book Title: Karmagrantha Part 6
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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बाट कर्म ग्रन्थ : गा०२
कर्मों की या मोहनीय के बिना सात कर्मों की तथा वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार अघाती कर्मों के रहते हुए आठों को, मोहनीय के बिना सात की या चार अघाती कर्मों की सत्ता पाई जाती है ।
इन सत्तास्थानों के स्वामी इस प्रकार हैं
चार अधाती कर्मों को सत्ता सयोगि और अयोगि केवलियों के होती है अतः चार प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी सयोगिकेवली और अयोगिकेवली गुणस्थानवर्ती होते हैं । मोहनीय के बिना शेष सात कर्मों की सत्ता बारहवें क्षीणमोह मुणस्थान में पाई जाती है, अतः सात प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी क्षीणमोह गुणस्थान वाले जीव हैं । आठ कर्मों की सत्ता पहले से लेकर ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान तक पाई जाती है, अतः आठ प्रकृतिक सत्तास्थान के स्वामी आदि के ग्यारह गुणस्थान वाले जीव हैं।
१. मोहनीये सत्यप्टानामपि सत्ता, ज्ञानापरणदर्शनावरणाऽन्तरायाणां सत्तायां
अष्टानां सप्तानां व सत्ता | वेदनीया यु नामगोत्राणां सत्तायामष्टानां सप्तानां चत्तसणां वा सत्ता। -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३ चतसृणां सत्ता वेदनीयादीनामेय सा, च सयोगिकेवलिगुणस्थानके अयोगिकेनिगुणस्थान के च द्रष्टव्या । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १४३ ३. (वा) ताप्टानामुपशान्तमोहगुणस्थानकं यावत् मोड़नीय क्षीणे सप्तानां,
मा च भीणमोहगुणस्थानके । ---सप्ततिका प्रकरण टोका, पृ० १४३ (ख) संतो ति अठ्ठसत्ता जीणे सत्तेव होति सत्ताणि 1 जोगिम्मि अजोगिम्मि य चत्तारि हवंति रात्ताणि ||
-गो० फर्मकांड, गा०४५७ उपशान्तकषाय गुणस्थान पर्यन्त आठों प्रकृतियों की सत्ता है। क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहनीम के विना साप्त करें की ही सत्ता है और सयोगिकेवली व अयोगि केवली इन दोनों में चार अघातिया कर्मों की सत्ता है।