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42 / जैन समाज का वृहद् इतिहास
में अभी सन् 1990 में अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है।
4. इन्दौर निवासी पं. नाथूलाल जी शास्त्री जैन जगत के प्रसिद्ध विद्वान एवं शिक्षा शास्त्री है। आपने पचासों पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें सम्पन्न कराई है। इन प्रतिष्ठाओं को एक रूप देने के लिये आपने अभी एक पुस्तक पंचकल्याणक विधि का सम्पादन किया है। वीर निर्वाण भारती द्वारा आप भी सम्मानित हो चुके हैं । इन्दौर से प्रकाशित होने वाले तीर्थंकर पत्र का पं. नाथूलाल शास्त्री विशेषांक प्रकाशित हुआ है। मध्य प्रदेश समाज में आपके प्रति विशेष श्रद्धा है ।
5. पं. सुमेरचन्द जी दिवाकर समाज के क्योवृद्ध विद्वान है। सिद्धान्त के मर्मज्ञ, धर्मशास्त्रों के पारगामी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में अनेक पुस्तकों के रचयिता, प्रभावक वक्ता, आर्ष परम्परा के प्रबल समर्थक, धर्म प्रचार के लिये समर्पित विद्वान है। जैन शासन, चारित्र चक्रवर्ती, तीर्थकर आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं । आपकी अब तक हिन्दी में 27 तथा अंग्रेजी में 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सन् 1905 में आपका जन्म हुआ। सन् 1964 में आपके सम्मान में अभिनन्दन समारोह में एक अभिनन्दन ग्रंथ भेंट किया गया था। पं. दिवाकर पर समाज को गौरव हैं।
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6. डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया समाज में प्रथम न्यायाचार्य विद्वान है। आप हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में जैन दर्शन विभाग में पहले प्राध्यापक एवं फिर रीडर पद पर रहे। न्यायशास्त्र के आप प्रमुख जैन विद्वान है। "जैन तर्कशास्त्र में अनुमान प्रमाण, " जैन दर्शन और प्रमाण शास्त्र परिशीलन, प्रमाण परीक्षा, प्रमाण प्रमेय कलिका जैसे न्यायशास्त्र के महत्त्वपूर्ण कृतियों आप लेखक एवं सम्पादक हैं । वर्तमान जगत के आप मूर्धन्य विद्वान है। आप विद्वत परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष रह चुके है तथा वीर निर्वाण भारती एवं अन्य कितनी ही संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं। आपके सम्मान में 1982 में डॉ. दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है।
7. पुराण ग्रंथों के सम्पादक एवं हिन्दी अनुवादक डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य की वर्तमान मनीषी जगत के मूर्धन्य विद्वानों में गणना की जाती है। जैन पुराणों के हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन उनका सबसे बड़ा यशस्वी कार्य है। उनकी संस्कृत कृति " सम्यकत्व चिन्तामणि' महत्त्वपूर्ण कृति है ।
8. डॉ. लाल बहादुर शास्त्री पुरानी पीढ़ी के मनीषी है। आरम्भ में इन्होंने जैन संदेश का सफल सम्पादन किया। भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के वर्षों तक अध्यक्ष रहे। डॉ. लाल बहादुर शास्त्री केन्द्रीय विद्यापीठ में जैन दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहे । आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार पर शोध प्रबन्ध लिखने से आप पीएच. डी. की उपाधि से सम्मानित हुये । शास्त्री जी अच्छे व्याख्याता, शास्त्रीय चर्चा में निपुण. एवं संस्कृतज्ञ काव्य रचना में प्रवीण विद्वान हैं। आपकी सामाजिक एवं साहित्यिक सेवाओं को देखते हुये सन् 1986 में आचार्य धर्मसागर जी महाराज के सानिध्य में सम्पूर्ण समाज की ओर से आपको अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया था।