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अर्थालंकार
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अर्द्धांगिनी
जाये, इसे काव्यार्थापत्ति भी कहते हैं अर्द्धनारीश्वर - अर्द्धनारीश― संज्ञा, पु०
० (सं० ) शिव और पार्वती का सम्मि लित रूप ( तंत्र० ) उमा शंकर, हरगौरि, गौरी-शंकर ।
अर्द्धनिमेष- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० )
( काव्य० प्र० पी० ) । प्रर्थालंकार - संज्ञा, पु० (सं० ) वह लंकार जिसमें गत चमत्कार प्रगट किया
जाय । ( काव्य, प्र० पी० ) 1 प्रर्थी - वि० (सं० अर्थिन ) इच्छा रखने वाला, चाह रखने वाला, कार्यार्थी, प्रयोजन वाला, गज़ 1
संज्ञा, पु० वादी, प्रार्थी, मुद्दई, सेवक,
याचक, धनी ।
संज्ञा, स्त्री० (दे० ) देखो " अस्थी " स्त्री० अर्थिनी ।
अर्दन - संज्ञा, पु० (सं० ) पीड़न, हिंसा, माँगना ।
जाना,
- स० क्रि० ( सं
अर्दन) पीड़ित
प्रर्दना. करना, दुःख देना | प्रदली - संज्ञा, पु० दे० ( अं० आर्डरली ) चपरासी ।
प्रदोषा - वि० (दे० ) मोटा आटा, दलिया । प्रदिन - वि० (सं० ) पीड़ित, हिंसित, याचित, गत, यंत्रणायुक्त, दुखित । अर्द्ध - वि० (सं० ) आधा, तुल्य या सम भाग, मध्य श्रद्धा (दे० ) । अर्द्धचंद्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) आधा चाँद, अष्टमी का चंद्रमा, चंद्रिका, मोरपंख पर बनी हुई आँख, नवचत, एक प्रकार का वाण, सानुनासिक का एक चिह्न चंद्र - विन्दु, एक प्रकार का त्रिपुंड गरदनिया, निकाल बाहर करने के लिये, गले में हाथ लगाने की एक मुद्रा विशेष । अर्धजल - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्मशान मैं शव को स्नान कराके आधा जल में
राधा बाहर रखने की क्रिया । अर्द्ध-कंपित - वि० यौ० (सं० ) श्राधा
छिपा हुआ ।
श्रर्द्धनयन - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) देवताओं की तीसरी आँख जो ललाट में होती है।
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आधा क्षण ।
" अर्ध निमेष कल्प सम बीता „
रामा० ।
अर्द्धप्रफुल्ल - वि० यौ० (सं० ) अधखिला, श्राधा फूला वि० अर्धप्रफुल्लित । अर्द्धमागधी - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं० ) प्राकृत भाषा का एक भेद, काशी और मथुरा के मध्यवर्ती प्रान्त की प्राचीन भाषा । अर्द्धरथ श्रर्द्धरथी - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) एक रथी से न्यून योधा, श्राधा रथी । अर्द्धरात्रि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) रात्रि का अर्ध भाग, मध्य रात्रि | अधरात ( दे० ) महानिशा, आधीरात (दे० ) । " अर्ध रात्रि गई कपि नहि श्रवा "
रामा० ।
प्रवृत - संज्ञा, पु० ० (सं० ) वृत या गोले का आधा भाग, गोलार्ध । अर्द्धसमवृत्त - संज्ञा, पु० या० ( सं० ) वह छंद जिसका प्रथम चरण तो तीसरे के और दूसरा चतुर्थ के बराबर होता है, जैसे दोहासोरठा (पिं० ) ।
प्रस्फुटित - वि० ० (सं० ) अधखिला, श्राधा खुला हुआ । वि० [अर्द्धस्फुट - अर्धविकसित । श्रद्धांग - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) श्राधा अंग, पक्षाघात या एक विशेष प्रकार का लकवा या वायु-रोग जिसमें आधा शरीर
काम और शून्य होकर जड़ीकृत सा हो जाता है, फालिज, पक्षाघात । अर्द्धांगिनी - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) स्त्री, पत्नी, अर्धांगी (दे० ) ।
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