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अर्ज
अर्थतः
अर्ज--संज्ञा, स्त्री० (अ.) विनय, प्रार्थना, | पाशुपत अस्त्र पाया था, द्रोणाचार्य से विनती।
इन्होंने धनुर्विद्या प्राप्त की थी। हयहय संज्ञा, पु० (अ.) चौड़ाई, श्रायत । वंशीय एक क्षत्रिय राजा, सहस्रार्जुन या अर्जक-संज्ञा, पु. ( सं०) उपार्जन करने सहसबाहु, सफ़ेद कनैर, मोर, आँख की वाला, अर्जयिता, कमाने या पैदा फूली, एकलौता बेटा। करने वाला।
वि० शुभ्र, उज्वल, स्वच्छ । अजेदाश्त-संज्ञा, स्त्री० ( फा० ) प्रार्थना- अर्जुनी-संज्ञा, स्त्री. (सं० ) सफ़ेद रंग पत्र, निवेदन पत्र ।
की गाय, कुटनी, उषा । अर्जन-संज्ञा, पु० (सं० ) उपार्जन, पैदा संज्ञा, पु० ( सं० ) अभिमन्यु, अर्जुन-सुत । करना, कमाना, संग्रह करना, इकट्ठा करना, अणे-संज्ञा, पु० (सं० ) वर्ण, अक्षर, जैसे संग्रह।
पञ्चाण-पंचाक्षर, जल, पानी, एक प्रकार अर्जनीय–वि० ( सं० ) उपार्जनीय, का दंडक वृत्त, शाल वृक्ष । कमनीय।
अर्णव-संज्ञा, पु० (सं०) समुद्र, सागर. अर्जमा—संज्ञा, पु० दे० (सं० अर्यमा ) सूर्य, इन्द्र, अंतरिक्ष, दंडक वृत्त का एक मदार, सूर्य उत्तर फाल्गुनी।
भेद विशेष, चार की संख्या । अर्जयिता-संज्ञा. पु. ( सं०) कमाने वाला, अर्णव-पोत-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) अर्जक।
जहाज़, बृहद् नौका। अर्जित-वि० ( सं० ) संग्रह किया हुआ, अर्णव-यान - संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) कमाया हुआ, प्राप्त, संग्रहीत, सञ्चित, । समुद्रयान, जहाज़ । लब्ध।
अर्थ-संज्ञा, पु० (सं० ) शब्द का अभिप्राय, अर्जी-संज्ञा, स्त्री० ( अ० ) प्रार्थना-पत्र, शब्द-शक्ति, मानी, मतलब, प्रयोजन, निवेदन-पत्र ।
अभिप्राय, काम, इष्ट, हेतु, निमित्त, इंद्रियों अर्जीदावा संज्ञा, पु. । फा० ) अदालत के विषय, धन, संपत्ति, (च० वि०) के में दादरसी के लिये दिया जाने वाला लिये। प्रार्थना-पत्र ।
अर्थकर-वि. पु. ( सं० ) धन देने अर्जुन-संज्ञा, पु० (स.) एक बड़ा वृक्ष, । वाला, जिससे धन उपार्जित किया जाये, काहू, पाँच पांडवों में से मैंझले का नाम, लाभकारी। देवराज इंद्र के औरस (पांडु के क्षेत्रज ) स्त्री०-अर्थकरी-लाभ कारी। और कुन्ती के गर्भज पुत्र थे, श्रीकृष्ण के ये "अर्थकरी च विद्या"-हितो० । बहनोई और मित्र थे, कृष्ण इनके सारथी अर्थ-गौरव-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) अर्थरह कर महाभारत में रहे थे। इनके तीन । गांभीर्य नाम का एक काव्य गुण । प्राधान स्त्रियाँ थीं, द्रौपदी, सुभद्रा और “किराते त्वथं गौरवम् -। चित्रांगदा, कौरव्यय नाग की कन्या उलूपी अर्थज्ञ-वि. पु. ( सं० ) भाव-मर्मज्ञ, भी इनकी स्त्री थी, इंद्र से इन्होंने देव-युद्ध अर्थज्ञाता। एवं देवास्त्र-प्रयोग सीखा था, वहीं उर्वशी अर्थज्ञान-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) तात्पर्यके कारण इनको नपुंसकत्व प्राप्त हुआ, बोध । जिसका प्रभाव अज्ञात वनवास में रहा, अर्थतः-अव्य० (सं० ) फलतः, वस्तुतः, शिव जी की आराधना करके इन्हों ने मूलतः । भा० श. को०-२०
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