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{65) अधिगरणिया णं भंते ! किरिया कतिविहा पण्णता?
मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजोयणाहि गरणकिरिया य卐 निव्वत्तणाहिगरण-किरिया य।
(व्या. प्र. 3/3/4) [प्र.] भगवन्! आधिकरणिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है?
[उ.] मण्डितपुत्र ! आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है:- संयोजनाधिकरण-क्रिया और निर्वर्तनाधिकरण-क्रिया।
{66} कइया णं भंते! किरिया कतिविहा पण्णत्ता?
मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- अणवर यकायकिरिया य दुप्पउत्तकायकिरिया य।।
(व्या. प.
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[प्र.] भगवन् ! कायिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है?
[उ.] मण्डितपुत्र! कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है:* अनुपरतकाय-क्रिया और दुष्प्रयुक्तकाय-क्रिया।
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{67) पारितावणिया णं भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता?
मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सहत्थपारितावणिगा य परहत्थपारितावणिगा य।
(व्या. प्र. 3/3/6) [प्र.] भगवन् ! पारितापनिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है।
[उ.] मण्डितपुत्र! पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है:- स्वहस्तपारितापनिकी और परहस्तपारितापनिकी।
[पांच क्रियाओं का अर्थ- कायिकी काया में या काया से होने वाली। आधिकरणिकी जिससे आत्मा नरकादिदुर्गतियों में जाने का अधिकारी बनता है, ऐसा कोई अनुष्ठान-कार्य। अथवा तलवार, चक्रादि शस्त्र C वगैरह अधिकरण कहलाता है, ऐसे अधिकरण में या अधिकरण से होने वाली क्रिया। प्राद्वेषिकी- प्रद्वेष (या मत्सर) FE C में या प्रद्वेष के निमित्त से हुई अथवा प्रद्वेषरूप क्रिया। पारितापनिकी- परिताप- पीड़ा पहुंचाने से होने वाली क्रिया। CE प्राणातिपातिकी प्राणियों के प्राणों के अतिपात (वियोग या नाश) से हुई क्रिया।
EFEREFERE (जैन संस्कृति खण्ड/22
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