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and minute immobile beings, and gross mobile beings and gross immobile beings. (commentary by Acharya Haribhadra Suri, page 146)
१२. अहावरे दुच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं। __ सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि-से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वइज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायाविज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि। ___ तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।
दुच्चे भंते ! महव्वए उवढिओमि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं।
भन्ते ! इसके पश्चात् दूसरे महाव्रत में मृषावाद (असत्य भाषण) की विरतिनिवृत्ति की जाती है
भन्ते ! मैं सर्व मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हूँ। क्रोध के वश होकर, लोभ के वश होकर, भय के वश, तथा हास्य के वश से मैं स्वयं असत्य नहीं बोलूंगा, अन्य से असत्य नहीं बुलवाऊँगा और असत्य बोलने वालों का अनुमोदन नहीं करूँगा। मैं सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त तीन करण और तीन योग से इस सत्य महाव्रत का पालन करूँगा। अर्थात् मैं जीवन पर्यन्त असत्य भाषण मन, वचन, काया से न LR करूँगा, न कराऊँगा, न करने वाले का अनुमोदन करूँगा। ___ भन्ते ! मैं अतीत में किए मृषावाद का प्रतिक्रमण करता हूँ, उसकी निन्दा | करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ और आत्मा द्वारा वैसी प्रवृत्ति का त्याग करता हूँ। ___ भन्ते ! मैं दूसरे महाव्रत में उपस्थित हुआ हूँ। इसमें सर्व मृषावाद की विरति होती है।।१२॥ ___12. Bhante! After this, the second great-vow is abstinence from lying.
Bhante! I hereby abstain completely from lying. Under the influence of anger, greed, fear or gaiety I will never tell a lie;
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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