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२३. महुघयं व भुंजिज्ज संजए।
५/१/९७
सरस या नीरस - जैसा भी आहार मिले, साधक उसे 'मधु-घृत' की तरह प्रसन्नतापूर्वक खाए ।
An ascetic should eat what he gets happily, considering it to be butter and honey, irrespective of its being tasteful or tasteless.
5/1/97
५/१/९९
२४. उप्पण्णं नाइहीलिज्जा ।
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समय पर प्राप्त उचित वस्तु की अवहेलना न कीजिए ।
One should not belittle what proper thing he gets at proper time.
5/1/99
२५. मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छन्ति सुग्गई।
५/१/१००
मुधादायी - निष्कामभाव से दान देने वाला और मुधाजीवी - निस्पृह होकर साधनामय जीवन जीने वाला- दोनों ही सद्गति प्राप्त करते हैं।
In this world an unselfish donor and selfless spiritualist both attain a higher and good rebirth.
5/1/100
२६. काले कालं समायरे ।
५/२/४
जिस काल (समय) में जो कार्य करने का हो, उस काल में वही कार्य करना चाहिए।
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One should indulge in any activity only at its allotted or proper time.
5/2/4
२७. अलाभोति न सोइज्जा, तवोत्ति अहियासए ।
५/२/६
भिक्षु को यदि कभी मर्यादानुकूल शुद्ध भिक्षा न मिले तो खेद न करे, अपितु यह मानकर अलाभ परीषह को सहन करे कि अच्छा हुआ, आज सहज ही तप का अवसर मिल गया।
परिशिष्ट - २ Appendix 2
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LEGE
If a shraman does not get proper alms he should not feel sorry. He should tolerate the pain of deprivation, thinking that he got an opportunity to observe austerities. 5/2/6
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