________________
COMusumal
२८. अदीणो वित्तिमेसेज्जा, न विसीएज्ज पंडिए।
५/२/२८ ___ आत्मविद् साधक अदीनभाव से जीवन-यात्रा करता रहे। किसी भी स्थिति में मन में
खिन्नता न आने दे। An ascetic should lead a graceful life. In no situation should he get disturbed.
5/2/28 २९. पूयणट्ठा. जसोकामी, माणसंमाणकामए। बहुं पसवई पावं, मायासल्लं च कुव्वइ॥
५/२/३७ जो साधक पूजा प्रतिष्ठा के फेर में पड़ा है, यश का भूखा है, मान-सम्मान के पीछे दौड़ता है वह उनके लिए अनेक प्रकार के दंभ रचता हुआ अत्यधिक पापकर्म करता है। A shraman, who runs after false reverence, praise and respect, indulges in deceitful conduct attracting the bondage of acute and terrible sinful karmas.
5/2/37 ३०. पणीयं वज्जए रसं।
५/२/४२ विकार बढ़ाने वाला भोजन नहीं करे।
One should not eat a food that produces vices. 5/2/42 ३१. अणुमायं पि मेहावी, मायामोसं वि वज्जए।
५/२/५१ __ आत्मविद् साधक अणुमात्र भी माया-मृषा (दंभ और असत्य) का सेवन न करे।।
A disciplined shraman should refrain from even the slightest of deception and duplicity.
5/2/51 ३२. अहिंसा निउणा दिट्ठा, सव्वभूएसु संजमो। __ सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना यही अहिंसा का पूर्ण दर्शन है।
To keep discipline in behavior towards all beings is the doctrine of ahimsa.
6/9 ३३. सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं।
समस्त प्राणी सुखपूर्वक जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। All beings in this world desire to live and none wants to die.
६/११
6/11
४०२
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
sition Sunita
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org