Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 489
________________ 161 प्र ४७. बहुं सुणेहिं कन्नेहिं, बहुं अच्छीहिं पिच्छ । ८/२० न यदिट्ठे सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिह || भिक्षु ( मुनि) कानों से बहुत-सी बातें सुनता है, आँखों से बहुत-सी बातें देखता है, किन्तु देखी, सुनी सभी बातें (लोगों में) कहना उचित नहीं है । A shraman listens and sees many things with his ears and eyes, but it is not proper for him to express before others all what he has heard or seen. 8/20 ८/२६ ४८. कन्नसोक्खेहिं सद्देहिं, पेमं नाभिनिवेस । केवल कर्णप्रिय तथ्यहीन शब्दों में अनुरक्ति नहीं रखनी चाहिए। One should not have fondness for the meaningless words that are pleasing to ears. 8/26 ८/२७ ४९. देहदुक्खं महाफलं । शारीरिक कष्टों को समभावपूर्वक सहने से महाफल की प्राप्ति होती है । Tolerating physical pain with equanimity leads to the lofty attainment that is liberation. 8/27 ८/२९ ५०. थोवं लद्धुं न खिंसए । ملت मनचाहा लाभ न होने पर झुंझलाए नहीं । One should not grumble if he does not get what he desires. ५१. न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे । बुद्धिमान् दूसरों का तिरस्कार न करे और अपनी बड़ाई न करे । One should neither insult others nor praise himself. ५२. सुय लाभे न मज्जिज्जा । Jain Education International ५३. बीयं तं न समायरे । ज्ञान प्राप्त करके गर्व मत करो। One should not be proud of his knowledge. परिशिष्ट - २ Appendix 2 एक बार भूल होने पर दुबारा उसकी आवृत्ति न करे। Never repeat a mistake. For Private Personal Use Only 8/29 ८/३० 8/30 ८/३० 8/30 ८/३१ 8/3 ४०५ 10 ASELEC www.jainelibrary.org

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