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४७. बहुं सुणेहिं कन्नेहिं, बहुं अच्छीहिं पिच्छ ।
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न यदिट्ठे सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिह || भिक्षु ( मुनि) कानों से बहुत-सी बातें सुनता है, आँखों से बहुत-सी बातें देखता है, किन्तु देखी, सुनी सभी बातें (लोगों में) कहना उचित नहीं है ।
A shraman listens and sees many things with his ears and eyes, but it is not proper for him to express before others all what he has heard or seen.
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४८. कन्नसोक्खेहिं सद्देहिं, पेमं नाभिनिवेस ।
केवल कर्णप्रिय तथ्यहीन शब्दों में अनुरक्ति नहीं रखनी चाहिए।
One should not have fondness for the meaningless words that are pleasing to ears.
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४९. देहदुक्खं महाफलं ।
शारीरिक कष्टों को समभावपूर्वक सहने से महाफल की प्राप्ति होती है ।
Tolerating physical pain with equanimity leads to the lofty attainment that is liberation.
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५०. थोवं लद्धुं न खिंसए ।
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मनचाहा लाभ न होने पर झुंझलाए नहीं ।
One should not grumble if he does not get what he desires.
५१. न बाहिरं परिभवे, अत्ताणं न समुक्कसे ।
बुद्धिमान् दूसरों का तिरस्कार न करे और अपनी बड़ाई न करे ।
One should neither insult others nor praise himself.
५२. सुय लाभे न मज्जिज्जा ।
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५३. बीयं तं न समायरे ।
ज्ञान प्राप्त करके गर्व मत करो।
One should not be proud of his knowledge.
परिशिष्ट - २ Appendix 2
एक बार भूल होने पर दुबारा उसकी आवृत्ति न करे। Never repeat a mistake.
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