Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 487
________________ लय SEEEEEE) 筑 ३४. मुसावाओ उ लोगम्मि, सव्वसाहूहिं गरहिओ । विश्व के सभी सत्पुरुषों ने मृषावाद (असत्य) की निंदा की है। All sages in this world have condemned falsehood. ३६. मुच्छा परिग्गहो वृत्तो । Tou 6/13 ३५. जे सिया सन्निहिं कामे, गिही पव्वइए न से। ६/१९ जो सदा संग्रह की भावना रखता है, वह साधु नहीं, (साधुवेश में) गृहस्थ ही है। An ascetic who always desires to collect is in fact a householder not a shraman. 6/19 ६/२१ मूर्च्छा को ही वस्तुतः परिग्रह कहा है। The sages say that attachment is possession. ६/१३ ३७. अवि अप्पणो वि देहमि, नायरंति ममाइयं । अकिंचन मुनि, और तो क्या, अपने देह पर भी ममत्व नहीं रखते । The detached ascetics do not nurture any feeling of attachment even for their body. 6/22 Jain Education International 6/21 ६/२२ ३८. कुसीलवडणं ठाणं, दूरओ परिवज्जए । ६/५९ कुशील (अनाचार) बढ़ाने वाले प्रसंगों से साधक को हमेशा दूर रहना चाहिए । An ascetic should avoid indulging in activities that promote corruption. 6/59 ३९. जमट्टंतु न जाणेज्जा, एवमेयंति नो वए। ७/८ जिस बात को स्वयं न जानता हो, उसके सम्बन्ध में 'यह ऐसा ही है' - इस प्रकार निश्चित भाषा न बोले । For Private & Personal Use Only When not fully aware of the facts one should not give a conclusive statement like-It certainly is like this. - 7/8 ४०. जत्थ संका भवे तं तु, एवमेयंति नो वए। ७/९ जिस विषय में अपने को कुछ भी शंका जैसा लगता हो, उसके सम्बन्ध में 'यह ऐसा ही है ' - इस प्रकार निश्चित भाषा न बोले । परिशिष्ट - २ Appendix 2 ४०३ पड 1100 www.jainelibrary.org

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