Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 495
________________ सा K Consider all living beings of the six classes dear as your own soul. 10/5 ८१. सम्मद्दिवी सया अमूढे। १०/७ जिसकी दृष्टि सम्यक् है, वह कभी कर्तव्यविमूढ़ नहीं होता। One who is endowed with right perception is never befooled. 10/7 ८२. न य बुग्गहियं कहं कहिज्जा। १०/१० विग्रह बढ़ाने वाली बात नहीं करनी चाहिए। Never use provocative language. 10/10 ८३. उवसंते अविहेडए जे स भिक्खू। १०/१० जो शान्त है और अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक (अनुपेक्षी) है, वही श्रेष्ठ भिक्षु है। One who is tranquil and serene and is conscious of his duties, he alone is a bhikshu. 10/10 ८४. पुढविसमो मुणी हवेज्जा। १०/१३ मुनि को पृथ्वी के समान क्षमाशील होना चाहिए। A shraman should be tolerant and merciful like earth. 10/13 ८५. पत्तेयं पुण्ण पावं। चू. १/१ पुण्य और पाप सबका अपना-अपना है। Every soul has its own sin and piety. C. 1/1 ८६. संभिन्नवत्तस्स य हिडिमा गई। चू. १/१३ व्रत से भ्रष्ट होने वाले की अधोगति होती है। One who has fallen from grace (discipline) suffers miseries during this and the next life. C. 1/13 ८७. बोही य से नो सुलहा पुणो पुणो। चू. १/१४ सद्बोध प्राप्त करने का अवसर बार-बार मिलना सुलभ नहीं है। It is not easy to get opportunities to get enlightened time and C. 1/14 ॐ ॐ ॐ 3000 again. परिशिष्ट-२ Appendix -2 ४११ MUMEANIN HOTILITIE (Guuuuunil Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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