Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 493
________________ Suitinue मा ६९. जे आयरिय-उवज्झायाणं, सुस्सूसा वयणं करे। तेसिं सिक्खा पवटुंति, जलसित्ता इव पायवा। ९/२/१२ जो अपने आचार्य एवं उपाध्यायों की शुश्रूषा-सेवा तथा उनकी आज्ञाओं का पालन करता है, उसकी शिक्षाएँ (विद्याएँ) वैसे ही बढ़ती हैं जैसे कि जल से सींचे जाने पर वृक्षा The ascetics who serve and obey the acharyas and upadhyayas are blessed with ever increasing knowledge like a well watered tree. 9/2/12 ७0. विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणीयस्स य। ९/२/२२ अविनीत विपत्ति (दुःख) का भागी होता है और विनीत संपत्ति (सुख) का। A rude person begets troubles and a polite one gets wealth (happiness). 9/2/22 ७१. असंविभागी नहु तस्स मोक्खो। ९/२/२३ जो संविभागी नहीं है, अर्थात् प्राप्त सामग्री को साथियों में बाँटता नहीं है, उसकी मुक्ति नहीं होती। One who does not share alms with fellow ascetics can never attain liberation. 9/2/23 ७२. जो छंदमाराहयई स पुज्जो। ९/३/१ जो गुरुजनों की भावनाओं का आदर करता है, वही शिष्य पूज्य होता है। Only he who respects the feelings of the seniors is a worthy one. 9/3/1 ७३. वक्ककरे स पुज्जो। ९/३/३ गुरुओं का अनुशासन मानने वाला पूजनीय होता है। Only he who obeys the teachers is a worthy one. 9/3/3 ७४. अलद्धयं नो परिदेवइज्जा, लटुं न विकत्थयई स पुज्जो। ९/३/४ जो लाभ न होने पर खिन्न नहीं होता है और लाभ होने पर अपनी बड़ाई नहीं हाँकता है, वही पूज्य है। खाजा परिशिष्ट-२ Appendix-2 ४०९ EHLLIAWINo cciiiiiILI Nition CITrimuIS sywaunu Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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