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वर्षा आदि के समय रास्ते में काठ, शिला व ईंट आदि वस्तु (जाने-आने के) 7 लिए रखी हुई हों और वे अस्थिर हों, हिलती हों तो साधु उस मार्ग से गमनागमन न करे, क्योंकि ऐसा करने से असंयम की संभावना है। इसी प्रकार सर्वेन्द्रिय-समाहित साधु अन्य अन्धकारमय और पोले मार्गों से भी गमनागमन न करे॥६५-६६॥
65, 66. If, during the rainy season, things like wooden planks, boulders or bricks placed on the path to help movement are loosely placed or shaky, an ascetic should not use that path, as there are chances of forced indiscipline. Similarly a disciplined shraman should also avoid a dark or loose and spongy path. ६७ : निस्सेणिं फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारुहे।
मंचं कीलं च पासायं समणट्ठाए एव दावए॥ ___यदि कोई दाता केवल साधु को आहार देने के लिये निश्रेणी (निसैनी/सीढ़ी), फलक (तख्ता), पीठ (पीढ़ा, चौकी), मंच और कील खंभा के सहारे या इन पर चढ़कर प्रासाद पर ऊँचा चढ़े और साधु को आहार दे तो साधु वह आहार न ले॥६७॥
67. If a donor climbs a ladder, a bench, a stool, a table or raises himself using a peg or a pillar in order to get food for an 18 ascetic, the shraman should not accept such food. ६८ : दुरूहमाणी पवडेज्जा हत्थं पायं व लूसए।
पुढवि जीवे वि हिंसेज्जा जे य तन्निस्सिया जगे॥ ६९ : एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणो।
तम्हा मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हंति संजया। पूर्वोक्त निश्रेणी आदि द्वारा दुःखपूर्वक ऊपर चढ़ने से दाता के गिर जाने, हाथ-पैर आदि अंग-भंग हो जाने की तथा पृथ्वीकायिक एवं पृथ्वीकाय आश्रित पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) Fifth Chapter : Pindaishana (Ist Section) १४१
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