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१८ : उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाणजल्लिअं।
फासुयं पडिलेहित्ता परिठ्ठाविज्ज संजए॥ साधु के लिए उचित है कि वह मल-मूत्र, कफ, नासिकामल, शरीर का मैल आदि अशुचि पदार्थ. किसी प्रासुक (निर्जीव) स्थान में प्रथम प्रतिलेखना/देखभाल करके ही त्यागे॥१८॥ ____18. A shraman should throw or discharge, only after finding a place free of living organism and inspecting it properly, any or all types of excreta such as urine, faeces, phlegm, bodily dirt, etc. यतनापूर्ण जीवनचर्या
१९ : पविसित्तु परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा। . जयं चिढ़े मियं भासे ण य रूवेसु मणं करे॥ गृहस्थ के घर आहार-पानी के लिए गया हुआ साधु उचित स्थान पर यतनापूर्वक खड़ा होवे, विचारपूर्वक हितकारी थोड़ा बोले तथा स्त्री आदि के रूप (शब्द, रस, गंध, स्पर्श) को देखकर मन को चंचल न होने दे॥१९॥ CAUTIOUS LIVING ___ 19. An ascetic out to seek alms should stand carefully at the proper place, think before speaking, speak pleasantly with brevity and remain composed when looking at things that captivate senses, such as beauty of a woman.
२० : बहुं सुणेइ कण्णेहिं बहुं अच्छीहिं पिच्छइ।
. न य दिटुं सुयं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिहइ॥ गृहस्थों के सम्पर्क में आने पर साधु, कानों से अच्छे-बुरे अनेक प्रकार के शब्द सुनता है और इसी प्रकार आँखों से भी अच्छा-बुरा बहुत कुछ देखता है। किन्तु जो कुछ देखे और सुने वह सब लोगों के सामने प्रकट करना उचित नहीं है॥२०॥
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavalkalik Sutra
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