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AMITION
conversation. An ascetic should not criticize his guru in his absence. He should also not resort to lies or duplicity. विशेषार्थ :
श्लोक ४७. पिढिमंसं-पृष्टमांस-इस शब्द का सीधा अर्थ होता है पीठ का माँस न खाना। किन्तु यहाँ पर शब्द का लाक्षणिक अर्थ है-पीठ पीछे चुगली या निंदा नहीं करना। निंदा को अत्यन्त घृणित कर्म बताने के लिये यहाँ उसके लिए ‘पृष्टमांस' शब्द का प्रयोग हुआ है। (आचार्यश्री आत्माराम जी म.)
ELABORATION:
(47) Pitthimans—the literal meaning of this word is flesh of the back. But here it means to criticize behind the back. This live metaphoric term has been used to lay stress on the abjectness of the act. (Acharyashri Atmaram ji M.) - ४८ : अप्पत्ति जेण सिया आसु कुप्पिज्ज वा परो।
सव्वसो तं न भासिज्जा भासं अहियगामिणिं॥ जिस भाषा व शब्द के बोलने से मन में अप्रीति-द्वेष उत्पन्न होता हो एवं । जिसे सुनकर कोई शीघ्र ही रुष्ट होता हो, ऐसी अहितकारिणी भाषा का प्रयोग सभी प्रकार से वर्जनीय है।॥४८॥
48. It is prohibited for an ascetic to use such damaging language that inspires aversion and provokes immediate anger.
४९ : दि8 मियं असंदिद्धं पडिपुन्नं वियं जिये।
अयंपिरमणुव्विग्गं भासं निसिर अत्तवं॥ आत्मवान अर्थात् आत्मा के केन्द्र में रहने वाला साधु वही भाषा बोले जो स्वयं अनुभव में आई हुई हो, जो सन्देहरहित हो अर्थात् जिसमें किसी प्रकार की शंका न हो, जो प्रतिपूर्ण हो, जो स्पष्ट हो तथा जो परिमित, वाचालतारहित, भयरहित स्वाभाविक स्वर में बोली जाये॥४९॥
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavalkalik Sutra
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