________________
NutO
Ayuuuuu
उपसंहार
आठवें अध्ययन में इन्द्रिय एवं मन को अशुभ प्रवृत्तियों से हटाकर शुभ प्रवृत्ति में KO नियोजित करने की अनेक सुन्दर विधियाँ बताई गई हैं। इन विधियों में अध्यात्म के साथ-साथ नीति व व्यवहार की भी उत्तम प्रेरणा दी है। आचार्य भद्रबाहु ने कहा है
तम्हा उ अप्पसत्थं पणिहाणं उज्झिऊण समणेणं। पणिहाणंमि पसत्थं भणिओ आयारपणिहिं ति।
-नियुक्ति गाथा ३०८ इन कषाय-विजय, इन्द्रिय-विजय, निद्रा-विजय, हास्य-विजय आदि आगम निर्देशों पर चिन्तन करता हुआ श्रमण अप्रशस्त-प्रणिधान का त्यागकर प्रशस्त-प्रणिधान में स्थिर रहे इसी का नाम आचार-प्रणिधि है। Conclusion
This eighth chapter gives many effective methods for shifting the senses and the mind from indulging in the evil activities to that in the pious activities. These methods are also helpful in refining the social and ethical behavior. Acharya Bhadrabahu has said, "The process of contemplating on these directions about winning over passions, senses, sleep, laughter etc. from the Agams and consequently rejecting the evil and accepting the pious is called Achar Pranidhi or cultivating conduct.
॥ आठवाँ अध्ययन समाप्त ॥ END OF EIGHTH CHAPTER
२९४
श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
S
Guawn
FCILITLE OuuuuN
मार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org