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TRA सत्कार और पूजा-प्रतिष्ठा की स्पृहा नहीं करता तथा जो स्थिर स्वभावी और
निश्चल होता है और कर्म-समूह का नाश करने में शक्ति का उपयोग करता है, वह भिक्षु है॥१७॥ ___17. One who is free of any cravings, who does not submit to his taste-buds, who eats food collected in small quantity from numerous unknown families, who is not desirous of indisciplined life, acquisitions, honor or worship, who is serene and unwavering, and who uses all his power to destroy the accumulated karmas, he alone is a bhikshu. परनिन्दा-आत्म प्रशंसा निषेध १८ : न परं वएज्जासि अयं कुसीले जेणऽन्नो कुप्पेज्ज न तं वएज्जा।
जाणिय पत्तेयं पुण्णपावं अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू॥ _ 'जों जैसा पुण्य-पाप करता है वह वैसा ही फल भोगता है' यह विचार कर जो दूसरों को कुशीलिया-दुराचारी कहकर तिरस्कृत नहीं करता। किसी को क्रोधोत्पादक कटु वचन नहीं कहता तथा 'मैं ही सबसे उत्कृष्ट हूँ' ऐसा मानकर गर्व नहीं करता, वही भिक्षु है॥१८॥ NEGATION OF INSULT TO OTHERS AND SELF-PRAISE ___18. Thinking that everyone reaps the fruits of his own good or bad deeds, one who does not insult others by calling them corrupt or immoral; who does not utter provocative or harsh words; and who does not take pride in considering himself to be the best, he alone is a bhikshu. १९ : न जाइमत्ते न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुएणमत्ते।
मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू॥ जो मुनि जाति का, रूप का, लाभ का और श्रुत आदि का मद-अभिमान नहीं करता, जो सब प्रकार के मदों का परित्याग करके सदा धर्मध्यान में ही लीन रहता है, वह भिक्षु है।॥१९॥
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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