Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 459
________________ AWINDOMIN बिइया चूलिकाः विवित्त चरिया द्वितीय चूलिकाः विविक्त चर्या SECOND ADDENDUM : VIVITTA CHARIYA PROPER ROUTINE aatha अनुस्रोत : प्रतिस्रोत १ : चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासि। ___जं सुणित्तु सपुन्नाणं धम्मे उप्पज्जए मई॥ मैं उस चूलिका का प्रवचन करता हूँ जो सुनी हुई है, केवलि भाषित है। A (अथवा श्रुत-केवलि भाषित है) जिसके श्रवण से पुण्यशाली जीवों की धर्म में दृढ़ श्रद्धा उत्पन्न होती है॥१॥ WITH AND AGAINST THE FLOW 1. Now I am narrating the addendum I have listened from the Kevali (or told by the great scholar of scriptures). Listening to this inspires deep faith for religion in the minds of pious beings. २ : अणुसोअपट्टिए बहुजणम्मि पडिसोअलद्धलक्खेणं। पडिसोअमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं॥ संसार के बहुत से प्राणी नदी के जल-प्रवाह में पड़े हुए काष्ठ की तरह विषयभोगरूपी नदी के प्रवाह में संसार-समुद्र की ओर बहे जा रहे हैं। किन्तु जिनका लक्ष्य विषयप्रवाह से विपरीत संयम की साधना में लग गया है और जो 50 संसार से मुक्त होने की इच्छा रखते हैं उनका कर्तव्य है कि वे अपनी आत्मा को सदा विषयों के प्रवाह से प्रतिकूल लेकर चले ॥२॥ द्वितीय चूलिका :विविक्त चर्या Second Addendum : Vivitta Chariya ३७५ EO BATTLE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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