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PALAMA
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only if it is given by hands or utensils that are soiled with the thing being given and not otherwise. ७ : अमज्जमंसासि अमच्छरीआ अभिक्खणं निव्विगइंगया य।।
अभिक्खणं काउस्सग्गकारी सज्झायजोगे पयओ हविज्जा।।।
साधु सदा मद्य और माँस भोजन से दूर रहे, किसी के साथ मत्सरभाव-ईर्ष्या ME न करे, बारम्बार विगय आदि पौष्टिक भोजन का सेवन न करे, पुनः-पुनः ।
कायोत्सर्ग करता रहे तथा स्वाध्याय-योग में प्रयत्नशील रहे॥७॥
7. An ascetic should refrain from consuming meat and alcohol, he should not be jealous, he should always eat only that food which is not faulty, he should regularly do meditation and self-study. विशेषार्थ : ___ श्लोक ७. अभिक्खणं निव्विगई-बार-बार निर्विकृतिक भोजन करने वाला। इसके स्पष्टीकरण में चूर्णिकार का कथन है-जिस प्रकार मद्य-माँस का सर्वथा निषेध है, वैसे दूध-दही, घृत आदि विकृतियों का एकान्त निषेध नहीं है, किन्तु प्रतिदिन विगय सेवन करना भी उपयुक्त नहीं है। अतः मुनि बार-बार विकृतिरहित रूखा भोजन लेने वाले होते हैं। आचार्यश्री श्री आत्माराम जी महराज के अनुसार भी प्रतिदिन पौष्टिक पदार्थों का सेवन करने से मादकता बढ़ती है। ___ सज्झायजोगे-स्वाध्याय योग-स्वाध्याय के हेतु निर्दिष्ट आयंबिल आदि तप की विशेष विधि। इसे योगवहन कहते हैं। आचार्य आत्माराम जी महाराज के अनुसार वाचना-पृच्छना आदि को स्वाध्याय योग कहा गया है। ELABORATION:
(7) Abhikkhanam nivvigaim—to always eat food that is not faulty. According to the commentary milk, curd, butter and other such nutritious things are not absolutely prohibited like meat and alcohol, but such things should not be eaten frequently. That is the reason that stress has been put on eating simple food. According to Acharyashri Atmaram ji M. rich food leads to an agitated state of mind and also physical lethargy.
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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