Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 469
________________ CILITI ¤~ SILKES) 筑 संसार में उस सत्पुरुष को प्रतिबुद्धजीवी कहते हैं, जिसने इन्द्रियों को जीत लिया, जिसके हृदय में संयम के प्रति धैर्य है, जिसके तीनों योग सदैव वश में रहते हैं, क्योंकि वही संसार में संयमपूर्ण जीवन जीता है ॥१५॥ B 15. Who has conquered his senses, who is steadfast in discipline and who has control over the three means of activities (mind, speech and body), only that great man is called enlightened because only he leads a perfectly disciplined life in this world. १६ : अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो सव्विंदिएहिं सुसमाहिएहिं । अरक्खि जाइपहं उवेइ सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ॥ त्ति बेमि । सब इन्द्रियों को सुसमाहित करके आत्मा की सतत रक्षा करना चाहिए । क्योंकि अरक्षित आत्मा जातिपथ - जन्म-मरण को प्राप्त होती है और सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाती है ॥ १६ ॥ ऐसा मैं कहता हूँ । 16. The soul should always be protected by properly disciplining the senses. An unprotected soul is caught in the cycles of life and death and the protected soul is liberated from all sorrows. . . . . . So I say. Q विशेषार्थ : श्लोक १६. अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो- आत्मा की सदा रक्षा करनी चाहिए - यहाँ प्रश्न होता है आत्मा तो अमर है, फिर उसकी रक्षा करने का क्या मतलब है ? इसका उत्तर दिया है चूर्णिकार ने - सो जीव संजय जीविएणं - श्रमण संयम से जीता है। संयम आत्मा की रक्षा करना ही उसकी आत्म-रक्षा है । वह रक्षा कैसे हो, इसी का उपाय प्रस्तुत गाथा में बताया है। सव्विंदिएहिं सुसमाहिए-इन्द्रियों की विषय-मुखी प्रवृत्ति को रोककर और संयम में स्थिर करके वह अपने संयम - जीवन की रक्षा करे | द्वितीय चूलिका : विविक्त चर्या Second Addendum Vivitta Chariya 五 Jain Education International ३८५ 山海 sl For Private & Personal Use Only CLLLLL www.jainelibrary.org

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