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परिशिष्ट -२ APPENDIX -2
दशवैकालिक के सुभाषित SELECTED APHORISMS. FROM DASHAVAIKALIK SUTRA
१. धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥
१/१ धर्म श्रेष्ठ मंगल है। अहिंसा, संयम और तप-धर्म के तीन रूप हैं। जिसका मन (विश्वास) धर्म में स्थिर है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। Dharma is the best among propitious things. The attributes of dharma are ahimsa, discipline and austerities (tap). Even gods (and emperors, kings, etc.) salute him who is ever absorbed in dharma.
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२. विहंगमा व पुप्फेसु दाणभत्तेसणे रया।
श्रमण-भिक्षु गृहस्थ से उसी प्रकार दानस्वरूप भिक्षा आदि ले, जिस प्रकार कि भ्रमर पुष्पों से रस लेता है। The shramans should seek and gather faultless food from numerous houses exactly as the bumble-bees gather pollen from flowers.
1/3 ३. वयं च वित्तिं लब्भामो, न य कोइ उवहम्मइ।
१/४ हम जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की इस प्रकार पूर्ति करें कि किसी को कुछ कष्ट न हो। We should collect alms in a manner that causes no harm or pain to any living being.
1/4 ४. महुगारसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया।
आत्मद्रष्टा साधक मधुकर के समान होते हैं, वे कहीं किसी एक व्यक्ति या वस्तु पर प्रतिबद्ध नहीं होते। जहाँ रस (गुण) मिलता है, वहीं से ग्रहण कर लेते हैं।
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परिशिष्ट-२ Appendix - 2
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