Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 462
________________ HAAROR MUDDIN Pe एक ही स्थान पर नहीं रहना अथवा गृहस्थ के घर में नहीं रहना, सामुदानी भिक्षा करना, अज्ञात-कुल से थोड़ा-थोड़ा आवश्यक आहारादि लेना, एकान्त स्थान में निवास करना, उपकरण एवं उपधि अल्पमात्र में रखना और कलह का त्याग करना ऐसी विहारचर्या ऋषियों के लिए प्रशस्त है, प्रशंसनीय है॥५॥ THE ROUTINE 5. To avoid living at one place or with a householder, to collect alms in the prescribed manner—a little each from numerous unknown families, to live in solitude, to keep necessary equipment in limited numbers, and to avoid quarrels; such is the perfect and commendable routine of the itinerant ascetic. विशेषार्थ : श्लोक ५. अप्पोवही-अल्प उपधि-इसके दो भेद हैं-द्रव्य और भाव। वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों की अल्पता, द्रव्य-अल्प उपधि है तथा क्रोध आदि कषायों की कमी करना भाव से अल्प उपधि है। विहार चरिया-इसके भी दो अर्थ मिलते हैं-पदयात्रा रूप विहार को विहार चर्या कहा है, तो दूसरा अर्थ है भिक्षु की समस्त जीवन-चर्या समस्त यतिक्रिया करणम्। ELABORATION : (5) Appovahi-limited equipment, this has two classes--one is physical (equipment like clothing, utensils, etc.) and the other is mental (limiting of passions). Vihar chariya—this means the routine during the ascetic wanderings as well as the life long routine of an ascetic. ६ : आइण्णओ माणविवज्जणा य ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे। संसट्ठकप्पेण चरिज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ठ जई जएज्जा॥ आकीर्ण और अवमान आहार का परित्याग और दृष्ट स्थान से उपयोगपूर्वक शुद्ध भिक्षा ग्रहण करना ही भिक्षु के लिए श्रेष्ठ है। उसे संसृष्ट हस्त व पात्रादि से ३७८ श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra ARTHA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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