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2. Majority of beings are drifting like logs in the river of mundane pleasures and heading towards the ocean of mundane life (cycles of rebirth). But those who have commenced spiritual practices with liberation as their goal should move against the current of mundane pleasures. विशेषार्थ :
श्लोक २. अणुसोयपट्टिए-जल का प्रवाह जब ढलान या नीचे प्रदेश की ओर होता है तो उसमें गिरने वाली वस्तुएँ भी प्रवाह के साथ बहती जाती हैं-इसे अनुनोत प्रस्थित कहा जाता है। प्रतिस्रोत है बहाव के विपरीत दिशा में चलना। आगमिक संदर्भ में इन्द्रिय-विषयों के प्रवाह में बहना अनुम्रत है। इन्द्रिय-विषयों से निवृत्त होना प्रतिस्रोत है। सद्दादि विसय पडिलोमा प्रवृत्ती दुक्करा-शब्दादि विषयों के प्रतिलोम प्रवृत्ति करना दुष्कर है। -(अगस्त्यसिंह चूर्णि) ELABORATION: ___ (2) Anusoyapatthiye--moving with the current; when water flows from a higher to a lower level every floating thing drifts with the current. Going in the opposite direction with an effort is moving against the current. With reference to the spiritual endeavour, indulgence in mundane pleasures or activities is drifting with the current and detachment from these is moving against current, which, indeed, is difficult. (Agastya Simha Churni) ३ : अणुसोय सुहो लोगो पडिसोओ आसवो सुविहिआणं।
अणुसोओ संसारो पडिसोओ तस्स उत्तारो॥ ___ यह संसार अनुस्रोत (प्रवाह के साथ चलने वाला) के समान है और सुविहित साधुओं का दीक्षारूप आयाम प्रतिस्रोत (बहाव के विपरीत गति) के समान है, क्योंकि इसी से संसार-समुद्र पार किया जाता है। इसीलिए सामान्य संसारी जीवों
को प्रतिस्रोत (संयम या जन्म-मरण के पार पहुंचने का मार्ग) कठिन प्रतीत होता MS है, वे तो अनुस्रोत-इन्द्रियों के अनुकूल चलने में ही सुख मानते हैं॥३॥
3. In this world the mundane way is to move with the current and the disciplined ascetic way is to move against the
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
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