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THIS SORROW IS SHORT-PERIOD
15. Such shraman should resort to thinking-When the extremely painful and miserable, palyopam and sagaropam (hypothetical measures of superlative time span) long, life of sufferance of hellish beings comes to an end, my mental sufferance related to lax conduct is insignificant. १६ : न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो।
न चे सरीरेण इमेणऽविस्सई अविस्सई जीविअपज्जवेण मे॥ यह मेरा दुःख अधिक समय तक नहीं ठहर सकेगा, क्योंकि जीव की भोग-पिपासा अशाश्वत है। यदि यह शरीर के रहते नष्ट नहीं हुई तो शरीर की समाप्ति के समय तो अवश्य ही नष्ट हो जायेगी॥१६॥ __16. It will not last long because the desire for mundane pleasures is not eternal. If at all it does not end before, it will certainly end with death. १७ : जस्सेवमप्पा उ हविज्ज निच्छिओ चइज्ज देहं न हु धम्मसासणं।
तं तारिसं नो पयलेंति इंदिया उविंतिवाया व सुदंसणं गिरिं॥ जिस मुनि की आत्मा इस प्रकार दृढ़ होती है, उसका ऐसा निश्चय होता है कि अवसर पड़ने पर शरीर का तो सहर्ष परित्याग कर देना चाहिए, किन्तु धर्मशासन को नहीं छोड़ना चाहिए। जिस प्रकार प्रलयकाल की महावायु पर्वतराज सुमेरु को नहीं हिला सकती उसी प्रकार चंचल इन्द्रियाँ भी ऐसे दृढ़ प्रतिज्ञ मुनि को विचलित नहीं कर सकतीं॥१७॥ ____17. An ascetic who strengthens his mind thus, resolvesunder such grave situation it is better to embrace death happily rather than to abandon the religious discipline. As the doomsday storm cannot move the great Sumeru mountain, so the playful senses cannot move such a resolute shraman.
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प्रथम चूलिका : रतिवाक्या First Addendum:Raivakka
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