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१८ : इच्चेव संपस्सिअ बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं विआणिया। काएण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिट्ठिजासि॥
त्ति बेमि। बुद्धिमान् मनुष्य को इस प्रकार सम्यक् विचार करके, ज्ञानादि लाभ के साधनों को जानना चाहिए तथा मन, वचन और काय के योग से त्रिविध-गुप्त । होकर, जिन वचनों का यथावत् पालन करना चाहिए॥१८॥
ऐसा मैं कहता हूँ।
18. A wise man should take to this right track of thought and should find the means of benefit (like knowledge). He should then practice restraint of mind, speech and body, and follow the dictates of the Jina. . . . . . . . . So I say.
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॥ प्रथम चूलिका समाप्त || END OF FIRST ADDENDUM
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श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
HIHINDI
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