Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 454
________________ १४ : भुंजित्तु भोगाइं पसज्झ चेयसा तहाविहं कटु असंजमं बहु। गई च गच्छे अणहिल्झियं दुहं बोही अ से नो सुलभा पुणो पुणो॥ वह संयम से भ्रष्ट साधु आवेगयुक्त चित्त से भोगों को भोगकर एवं तथाविध असंयम का सेवन करके आयुष्य पूर्ण कर जब अनिष्ट एवं दुःखद नरकादि नीच गतियों में जाता है फिर वहाँ उसे सहज ही धर्मबोध की प्राप्ति नहीं होती है॥१४॥ ____14. When such shraman, in his agitated state of mind, indulges in mundane pleasures, leads an indisciplined life, and consequently reincarnates in lowly life forms, it is not easy for him to get enlightened. विशेषार्थ : श्लोक १४. पसज्झ चेयसा-आवेगपूर्ण चित्त से-चूर्णिकार ने इसका अर्थ किया है-विषयभोगों की प्राप्ति या उनके संरक्षण के लिए हिंसा असत्य आदि भावावेश पूर्ण मनःस्थिति वाला-प्रसह्यचेता कहलाता है। ELABORATION: (14) Pasajjhe cheyasamin an agitated state of mind; according to the commentary (Churni) this state is caused by the rise of passions and violent attitude for the purpose of acquiring the sources and means of mundane pleasure and protecting them. यह दुःख भी अल्पकालिक है १५ : इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो। पलिओवमं झिज्जइ सागरोवमं किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं? ॥ (संकट आ पड़ने पर संयम से डिगने वाले साधु को यह विचार करना चाहिए KS कि) असह्य दुःखों और क्लेशों से युक्त नारकीय जीवों की पल्योपम एवं सागरोपम जैसी दीर्घ आयु भी भोगकर समाप्त हो जाती है तो फिर मेरा यह चारित्र विषयक मानसिक दुःख तो कितने समय का है॥१५॥ SEARNER ३७० श्री दशवैकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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