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चित्र परिचय : २४
Illustration No. 24
संयम में सुखी : असंयम में दुःखी DISCIPLINE GIVES HAPPINESS : INDISCIPLINE GIVES PAIN
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१. देवलोग समाणो य-जो श्रमण महर्षि अपने संयम में स्थिर हैं, वे संयम जीवन में निस्पृहता एवं असत्य स्वतंत्र रूप स्वर्ग के समान सुखों का अनुभव करते रहते हैं।
1. The great sages who are steadfast in their discipline experience divine heavenly bliss.
२. महानिरय सारिसो-इसके विपरीत संयम में जिनका मन नहीं रमा है, वे भोगों की इच्छा रखते हुए परवश हुए संयम साधना में नरक के समान दुःखों का अनुभव करते हुए सदा संतप्त रहते हैं।
(चूलिका १, श्लोक १०-११) 2. Those who are distracted in their discipline by desires for mundane pleasures during their practices are always tortured by hellish pain.
(Chulika 1, verses 10-11) ३. धम्माओ भट्ठ-जिस सर्य की दाढ़ें उखाड़ ली गई हों साधारण लोग भी उसकी अवहेलना करके अपमानित करते रहते हैं। इसी प्रकार जो श्रमण अपने संयम से पतित या भ्रष्ट हो जाते हैं, साधारण व्यक्ति भी उनकी अवमानना करते हैं। जिस प्रकार यज्ञ की वुझी हुई निःस्तेज अग्नि-वेदिका पर लोग थूकते हैं, निरादर करते हैं, वैसे ही संयम-भ्रष्ट व्यक्ति अवहेलना का पात्र होता है।
(चूलिका १, श्लोक १२) 3. A snake without venom is ignored and humiliated, even by ordinary men. In the same way, the shraman who becomes lax in his discipline is insulted, even by common men. As people spit upon the platform with an extinguished Yajna fire, the person fallen from the pedestal of discipline is treated in the same way.
(Chulika 1, verse 12)
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