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जो महर्षि मुनि-पर्याय में रत हैं, उन्हें तो यह संयम स्वर्गलोक के समान सुखदायक प्रतीत है, किन्तु जो संयम में अरुचि रखने वाले हैं, उन्हें वह मुनि-पर्याय महान् रौरव नरक के समान दुःखदायक लगता है॥१०॥ THE BLISS OF DISCIPLINE ___10. To those who are inclined to follow the ascetic way discipline is like a heavenly bliss but to those who are not so inclined discipline is like hellish misery. ११ : अमरोवमं जाणिय सुक्खमुत्तमं रयाणं परियाए तहारयाणं।
निरओवमं जाणिअ दुक्खमुत्तमं रमिज्ज तम्हा परियाई पंडिए॥ संयम में मग्न रहने वाले साधु देवों के समान उत्तम सुख का अनुभव करते हैं और संयम से विरक्त रहने वाले नरक के समान दुःख अनुभव करते हैं। इस च्चिा सत्य को जानकर बुद्धिमान् साधु को संयम में सतत रमण करना चाहिए॥११॥
11. The shramans who are engrossed in discipline enjoy divine pleasures and those who dislike discipline suffer infernal miseries. Knowing this fact a wise shraman should always revel in discipline. संयमभ्रष्ट की दुर्दशा १२ : धम्माउ भटुं सिरिओववेयं जन्नग्गि विज्झाअमिवप्नतेयं।
हीलंति णं दुविहियं कुसीला दाढुद्धियं घोरविसं व नागं॥ जों भिक्षु धर्म से भ्रष्ट एवं बुझी हुई यज्ञाग्नि के समान यारित्र-तप के तेज से हीन हो जाता है, उसकी नीच मनुष्य भी निन्दा/अवहेलना करते हैं। ऐसा संयमभ्रष्ट साधु साधारण लोगों से उसी प्रकार तिरस्कृत होता है, जिस प्रकार विष की दाढ़ें उखाड़ा हुआ घोर विषधारी सर्प॥१२॥ THE MISERY OF THE INDISCIPLINED
12. Even the lowly people ignore and criticize a shraman who has fallen from grace and is deprived of his aura, like
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
SARAN SYILAL
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