Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Shayyambhavsuri, Amarmuni, Shreechand Surana, Purushottamsingh Sardar, Harvindarsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 439
________________ ALBELA atta BERBLI प्रथम चूलिका: रतिवाक्या प्राथमिक पिछले दस अध्ययनों में भिक्षु के उत्कृष्ट आचार नियमों का प्रतिपादन किया गया है। यदि भोगावली कर्मों के उदयवश कभी श्रमण का चित्त चंचल और मोहग्रस्त हो उठे, उसे संयम में अरुचि - अरति उत्पन्न हो जाय तथा असंयम में रुचि या राग होने लगे तो उसकी इस मोह दशा का निवारण करने के लिए इस अध्ययन में अत्यन्त मानस - स्पर्शी सहज सुबोध उपदेश दिया गया है। जिसके श्रवण-मनन से खेद खिन्न चंचल चित्त में पुनः संयम के प्रति रति - अनुराग उत्पन्न हो सकेगा। इस कारण इस अध्ययन का 'रतिवाक्या' - संयम में रति उत्पन्न करने वाले वाक्य नाम दिया है। चूला या चूलिका का अर्थ है मूल सूत्र में नहीं बताया हुआ शेष अतिरिक्त वर्णन । वर्तमान भाषा में इसे परिशिष्ट कह सकते हैं। दस अध्ययनों में जो-जो नियम व उपदेशपद कहने से रह गये हैं उनका कथन इन चूलिकाओं में किया गया है। इस प्रथम चूलिका में संयम में स्थिर करने वाले अठारह स्थान या अष्टादश पद का वर्णन है। ये अठारह पद बहुत ही सारपूर्ण सुभाषित वाक्य जैसे हैं। जैसे- बंधे गिहिवासे मोक्खे परियाए - गृहस्थवास बंधन है, संयम मोक्ष- स्वतंत्रता का आस्थान है। पत्तेयं पुण्ण-पापं - पुण्य-पाप प्रत्येक आत्मा का अपना स्वतंत्र है आदि । विविध दृष्टियों से इस अध्ययन का विषय अध्यात्म-साधक के लिए सम्बल है। इसे आग़म की भाषा में पोय-पडागा भूयाई - जहाज के लिए जैसे पताका का महत्त्व है, हाथी के लिए अंकुश का, उसी प्रकार अध्यात्म-साधना में बढ़ने वालों के लिए ये रति वाक्य अर्थात् प्रिय वाक्य सहारा देने वाले सिद्ध होंगे। प्रथम चूलिका : रतिवाक्या First Addendum : Raivakka Jain Education International 筑 For Private Personal Use Only ३५७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498