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बला
Key
ELABORATION:
(20) Kuseel ling-to dress like the followers of other school or follower of one's own school who does not conform to the ascetic code; to follow the wrong path. __२१ : तं देहवासं असुइं असासयं सया चए निच्च हियट्ठियप्पा। छिंदित्तु जाईमरणस्स बंधणं उवेइ भिक्खू अपुणरागमं गई॥
त्ति बेमि। अपनी आत्मा को सदा शाश्वत-हित में स्थिर रखने वाला भिक्षु, शुक्र शोणित पूर्ण इस अशुचिमय एवं विनाशशील शरीर का सदा के लिए परित्याग कर देता है तथा जन्म-मरण के बन्धनों को काटकर जहाँ जाने के बाद फिर संसार में आना-जाना नहीं होता है ऐसे अपुनरागम-गतिरूप मुक्ति स्थान को प्राप्त कर लेता है।॥२१॥
ऐसा मैं कहता हूँ।
21. Such bhikshu who is steadfast on the path of eternal benefit abandons forever this ephemeral body filled with semen, blood and faeces, severs the bonds of life-cycles and reaches the place from where one does not return to this world. In other words, he attains liberation. . . . . . So I say.
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॥ दसवाँ अध्ययन समाप्त ॥ END OF TENTH CHAPTER
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श्री दशवकालिक सूत्र : Shri Dashavaikalik Sutra
Snuuul
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